संदीप कुमार सिंह 01 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 9324 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" नमक छिड़कते घाव पर,ऐसे गन्दे लोग। लेते हैं तब वह मजा,जैसे उनको रोग।। नमक छिड़कते घाव पर,होते ऐसे दुष्ट। अपना तो जाने नहीं,होता वह भी रुष्ट।। नमक छिड़कते घाव पर,दुश्मन रहे तलाश। मौका से वह वार कर,पूरा करते आश।। नमक छिड़कते घाव पर,जिसे नहीं है काम। वह बस इतना ही करे,और रहे बदनाम।। नमक छिड़कते घाव पर,जिसे नहीं है ज्ञान। वह अपना भी नाश कर,बना रहे अंजान।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....