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✍️किसी के गुलाम रहोगे।

Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 14587 0 Hindi :: हिंदी

ये आँख-आँख नही है, गहरा दरिया है,
नज़र बदले नही हैं, बस बदला नज़रिया है।
दुनिया के हर रहम में कुछ ख़ास छिपा है।
कहने को सब सही हैं, नही तो सभी मे कमियां हैं।
अपने हर एक दर्द को, अपने ही पास रखोगे,
सुनने को लोग नही रहेंगे,तब किताब लिखोगे।
ये दुनिया जीत कर भी तुम किसी के गुलाम रहोगे।

कमियां सभी मे दिखेंगी, दूरियां सबसे रहेंगी-
बातें मन की बेहिसाब लिखोगे,
ये दुनिया जीत कर भी तुम किसी के गुलाम रहोगे।

खुद को गुलज़ार रखने को, बहाने तलाशोगे,
कभी अकेले में बैठकर, कभी तालियों तमाशों में,
इतने शोहरत-दौलत लूटकर कर भी, किसके पास रखोगे?
ये दुनिया जीत कर भी तुम किसी के गुलाम रहोगे।

हर दिन नयी महफ़िल होगी, नया लश्कर होगा,
गलती कहीं होगी, पछतावा मन के अंदर होगा,
तुमसे जब लोग दुहाई मांगेंगे, किसको क्या-क्या कहोगे?
तुम्हारे तो अपने ओहदे होंगे, तुम क्या-क्या सहोगे?
ये दुनिया जीत कर भी तुम किसीके गुलाम रहोगे।

सभी कुछ पास में होगा,
सब कुछ हाँथ में होगा,
जिसको तुम कहते हो अपना, यकीनन वो एक दिन याद में होगा।
किसीको कुछ नही मिलता, कुछ को यादों के साथ जाना है,
दर्द यादों का कभी नही सिलता, खुद को राहों पर अकेले एक बार फिर पाना है।
खुद से खुद की दूरियों को औरों के आवाज़ में कहोगे,
भरे महफ़िल में बैठकर,अपना दिल सुनसान रखोगे,
"ये दुनिया जीत कर भी तुम किसीके गुलाम रहोगे।"


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