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कालबोध

Ranjeet kumar mishra 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य जीवन का सत्य 10801 0 Hindi :: हिंदी

◆◆◆【कविता】◆◆◆


"कालबोध"


समय का चक्र,यूं 
चल रहा है
अखंड अग्नि 
जल रहा है।

मूड़ के देखा 
बचपन अपना 
जला भुना था
कितना सपना,


देख जवानी 
तरस गया 
आँखों से अश्रु 
बरस गया।

गया दौड़ के 
दर्पण के सम्मुख
देखा जब मैंने 
अपना मुख,


कनपटी के थे कुछ
बाल सफेद
तब जाना जीवन
का भेद।


न बचपन टीका 
न जवानी हीं रहेगी,
धू-धू करके 
ये जवानी भी जलेगी।


अब बचे हैं जीवन के 
दिन चार
नगद जवानी
बुढ़ापा उधार,

फिर होगा एक दिन प्रचण्ड दाह
जलेगी अग्नि धुआंधार
उड़ेगा पंछी पंख पसार
स्वागत करेंगी दशो द्वार


मैं हो मुक्त 
धरा से जाऊंगा
फिर नूतन जीवन पाऊंगा।।


कवि:-रमन मिश्रा(विचारक)
दिनांक:-10/01/2023

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