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महाराजा श्री हनवंत सिंह जी

Ritin Kumar 16 Jun 2023 आलेख अन्य #रितिन_पुंडीर #इतिहास #सत्य_इतिहास_भाग1 14592 0 Hindi :: हिंदी

मारवाड़ की प्रगति एवं जनहित के प्रति उनके योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेंगे।

राजा हनवंत सिंह राठौर का जन्म 16 जून 1923 को हुआ और 26 जनवरी 1952 को मौत हुई. वह जोधपुर के 1947 से राजा रहे. वह पोलो के अच्छे खिलाड़ी भी थे. 1943 में उन्होंने महारानी कृष्ण कुमारी से शादी की, जिनसे बेटे गज सिंह राठौड़ हुए और दो बेटियां हुईं.

महाराजा हनवंत सिंह जी द्वारा मारवाड़ी कास्तकारी व भूराजस्व अधिनियम का लागु करना :-

ये दोनो अधिनियम भारत देश के एक मात्र मारवाड़ के महाराजा हनवंत सिंह जी ने सबसे पहले 6 अप्रेल 1949 को लागु किये थे । इस अधिनियम के तहत मारवाड़ के लाखों किसान कास्तकार एक ही दिन में अपने खेतों के स्थाई खातेदार ( बापीदार ) बन गये । उन्हें इसके लिये न तो कोई रक़म सरकार को देनी पड़ी ओर ना ही जागीरदार को देनी पड़ी । ये बहुत बड़ा क्रांतिकारी अधिनियम था जो पहले पहल हिंदुस्तान के छः सौ रजवाड़ों मे एक मात्र जोधपुर रियासत ने लागु किया था ।

ये राजस्व क़ानून भारत के सबसे बड़ा प्रगतिशील क़ानून था जिसका श्रेय केवल जोधपुर महाराजा हनवंत सिंह जी को जाता है..

वर्ष 1952 आते-आते मारवाड़ (जोधपुर) के 28 वर्षीय युवा महाराजा हनवंत सिंह जी राठौड़ जुबैदा से एक पुत्र के पिता बन चुके थे ....

इस पुत्र का नाम हुकुमसिंह राठौड़ (टूटू बन्ना) रखा गया ....

(टूटू बन्ना जोधपुर सहित पूरे मारवाड़ में बहुत लोकप्रिय थे व बड़ी शानदार पर्सनैलिटी थी उनकी .... टूटू बन्ना का बाद में मर्डर हो गया था) ....

कहते हैं अप्रैल 1949 में महाराजा साहेब ने जब अपनी रियासत मारवाड़ (जोधपुर) का भारत में विलय किया था उस वक़्त मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर से मारवाड़ की प्रजा को अपने सम्बोधन में महाराजा ने कहा था ....

म्हे थां स्यूँ दूर नहीं ....

(मैं आपसे दूर नहीं हूं) .... (भले ही मारवाड़ का विलय भारत गणतंत्र में कर रहा हूँ लेकिन आपके साथ सदैव हूँ) ....

वर्ष 1952 में देश में आज़ादी के बाद पहली बार लोकसभा और विधानसभा के आम चुनाव होने थे .... उधर जुबैदा महाराजा पे निरंतर आधिकारिक शादी के लिए दबाव बना रही थी ....

महाराजा ने अब लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव लड़ के कांग्रेस को पटखनी देने की सोची ....

बात 1952 की है, जब केंद्र और राज्य सरकार के चुनाव होने वाले थे. उससे पहले अचानक जोधपुर के राजा हनवंत के दिमाग में राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ख्याल आया. नई पार्टी बनाने के बाद राजा हनवंत लोकसभा और विधानसभा चुनाव की कैंपेनिंग में जुट गए...
उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री को ही हराने की ठान ली और कमर कसकर उतर गए मैदान में.

महाराजा ने 1952 के प्रथम चुनावों में एक वार फिर मारवाड़ की जनता से कहा ....

म्हे थां स्यूँ दूर नहीं ....

(मैं आपसे दूर नहीं हूं) ....

महाराजा साहेब के इस स्लॉगन ने मारवाड़ की जनता को अपना दीवाना बना दिया ....

तय दिन पे राजस्थान में लोकसभा और विधानसभा के मतदान प्रारम्भ हुए .... राजस्थान की जनता ने लोक-परिधान पहन के लोक-गीतों पर लोक-नृत्यों के साथ झूमते हुए बूथ पे आ के उत्साह से मतदान किया ....

तय दिन पे मतगणना प्रारम्भ हुई ....

महाराजा मतगणना के वक़्त अपनी सीट जोधपुर-ए में मौजूद थे जहां उनके सामने राजस्थान के दिग्गज कांग्रेस प्रत्याशी और तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास उम्मीदवार थे ....

जोधपुर-ए सीट पे महाराजा ने जब कांग्रेसी मुख्यमंत्री पे भारी बढ़त बना ली तो अपनी विदेशी कार में सवार हो के अपने पिता स्वर्गीय महाराजा उम्मेद सिंह जी राठौड़ द्वारा निर्मित जोधपुर हवाई-अड्डे का रुख किया ....

हवाई-अड्डे पे पहुंच के महाराजा अपने निजी 6 सीटर विमान में सवार हुए ....

(महाराजा जितना शानदार देश दुनियां के मैदानों में पोलो खेलते थे उतना ही शानदार हवाईजहाज भी उड़ाते थे) ....

अपने निजी विमान में सवार हो के पायलट की सीट पे बैठने के बाद महाराजा ने देखा उनके पास उनकी प्रेयसी/पत्नी जुबैदा भी बैठी है ....

जुबैदा चाहती थी कि महाराजा के साथ वो साये की तरह रहे ताकि मारवाड़ की प्रजा उसे जाने और अपनी महारानी के रूप में स्वीकार करे ....

कुछ क्षण बाद महाराजा का विमान हवा में उड़ चला ....

मंज़िल थी जालौर .... जहां से भी महाराजा विधानसभा चुनावों में ताल ठोक रहे थे ....

लेकिन ....

कुछ देर बाद आकाश में आग का एक गोला उठा .... महाराजा का विमान रहस्यमयी तरीके से दुर्घटनाग्रस्त हो चुका था ....

महाराजा अपनी प्रेयसी जुबैदा के साथ ब्रह्मलीन हो चुके थे उनका शव क्षत-विक्षप्त हो चुका था ....

महाराजा की पार्थिव देह को मेहरानगढ़ दुर्ग में रखा गया ....

कुछ ही देर में पूरे मारवाड़ में महाराजा की दुर्घटना/देहान्त की खबर आग की तरफ फैल चुकी थी ....

मारवाड़ की राजधानी जोधपुर सहित पूरी रियासत की हज़ारों-हज़ारों जनता नम आंखों से अपने महाराजा के अंतिम दर्शन करने मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में जमा होने लगी ....

दूसरी तरफ मारवाड़ सहित पूरे राजस्थान में मतगणना जारी थी ....

मतगणना का परिणाम देखिये ....

(1) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ जोधपुर-ए सीट पे 78.50% मत हासिल करते हुए दिवंगत महाराजा ने राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को चुनाव हरा दिया ....

(2) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ महाराजा अपनी दूसरी जालौर-ए सीट से भारी मतों से चुनाव जीत चुके है ....

(3) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ महाराजा ने राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री को दोनों सीटों पे धूल चटा दी ....

(4) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ महाराजा अपनी मारवाड़ रियासत के 5 जिलों जोधपुर जालौर जैसलमेर बाड़मेर पाली की कुल 26 में से 26 विधानसभा सीटों पे कांग्रेस को नेस्तनाबूद कर चुके थे .... हरा चुके थे ....

(5) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ महाराजा मारवाड़ के 1 जिले नागौर की 8 में से 4 विधानसभा सीटों पे कांग्रेस को दफन कर चुके थे .... स्वर्गीय नाथूराम जी मिर्धा और स्वर्गीय मथुरादास जी माथुर जैसे दिग्गज कांग्रेसियों ने नागौर और लाडनूँ सहित नागौर जिले में सिर्फ 4 सीटें जीती थी ....

(6) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ महाराजा ने मारवाड़ रियासत की कुल 34 में से 30 सीटों पे कांग्रेस को तहसनहस कर डाला ....

(7) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ मारवाड़ की 6 में से 4 लोकसभा सीटें महाराजा के कब्जे में आ चुकी थी ....

(7) एक तरफ मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा की पार्थिव देह पड़ी है दूसरी तरफ दिवंगत महाराजा ने मारवाड़ में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया ....

लेकिन ....

यह देखने के लिए अब महाराजा जीवित नहीं थे ....

अपनी प्रेयसी जुबैदा के साथ महाराजा चिरनिद्रा में लीन हो चुके थे ....

महाराजा साहेब की पार्थिव देह मेहरानगढ़ दुर्ग में प्रजा के दर्शनार्थ पड़ी थी .... हज़ारों-हज़ारों मारवाड़ियों की भीड़ अपने लोकप्रिय महाराजा को नम नेत्रों से विदाई दे रही थी ....

किन्तु ....

म्हे थां स्यूँ दूर नहीं ....

महाराजा का ये स्लॉगन अमर हो चुका था ....

स्वर्गीय पंडित हीरालाल जी शास्त्री से स्वर्गीय पंडित टीकाराम जी पालीवाल और स्वर्गीय पंडित जयनारायण व्यास जी से अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे सिंधिया जब-जब चुनाव प्रचार के लिए मारवाड़ आते हैं तब-तब मारवाड़ की जनता को उद्घोष देते हैं ....

म्हे थां स्यूँ दूर नहीं ....

यह स्लॉगन सुन के मारवाड़ की जनता आज भी झूम उठती है .... दीवानी हो जाती है ....

वर्ष 2011 में सेंट्रल जेल जोधपुर के पास महाराजा साहेब के विमान का मलबा मिला था ....

मारवाड़ की जनता ने 1952 के जनादेश में देश को संदेश दे दिया था कि अपने महाराजाओं की अस्मिता और लोकप्रियता के सामने नेहरू का कद का बौना है....
और इसके लिए कांग्रेस को कभी जिम्मेदार भी नही बनाया गया कि इन्हें किसने मारा...

-रितिन पुंडीर ✍️

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