बासुदेव अग्रवाल 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक गंग छंद, बासुदेव अग्रवाल 76240 0 Hindi :: हिंदी
गंग की धारा। सर्व अघ हारा।। शिव शीश सोहे। जगत जन मोहे।। पावनी गंगा। करे तन चंगा।। नदी वरदानी। सरित-पटरानी।। तट पे बसे हैं। तीरथ सजे हैं।। हरिद्वार काशी। सब पाप नाशी।। ऋषिकेश शोभा। हृदय की लोभा।। भक्त गण आते। भाग्य सरहाते।। तीर पर आ के। मस्तक झुका के।। पितरगण सेते। जलांजलि देते।। मंदाकिनी माँ। अघनाशिनी माँ।। भव की तु तारा। 'नमन' शत बारा।। *********** गंग छंद विधान - गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है। यह आँक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 9 मात्राओं का विन्यास पंचकल + दो गुरु वर्ण (SS) हैं। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :- 122 212 221 (2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव दो गुरु (SS) से होना चाहिए।) ****************** बासुदेव अग्रवाल 'नमन' © तिनसुकिया