Divya Kumari 19 Mar 2024 कविताएँ देश-प्रेम 3280 0 Hindi :: हिंदी
राष्ट्रपुत्र भगत यह स्वर्णिम युग का भारत हैं जिसका स्वर्णिम इतिहास रहा, यह वह सौभाग्यशाली धरा हैं जिसे भगत सिंह नें माँ कहा | भगत सिंह सा पुत्र पा कर यह धरा खुशी नहीं सह पाई थी, गुलाम भारत पर नशा आजादी की छाई थी| जन्म हुआ सन् 1907 में एक लाहौर गाँव में, आजादी का शिक्षा पाया इन्होंने लाला लाजपत जी की छाँव में| जलियावालाबाग देख इनका खूंन खौल उठा, जवानी में वो भगत सिंह जी आजादी को दुल्हन बोल उठा| छोड़ा माँ की ममता को माँ की दुनियाँ सुना था छोड़ा माँ की ममता को माँ की दुनियाँ सुना था ढूंढ रही उस रस्सी को जिसे भगत सिंह ने चूमा था, इस आकस्मिक हत्या देख देख भारतीयों का माथा घुमा था| जिसने बंदूक को बीज समझकर बोया था, भारत माँ को मिली आजादी पर हमने राष्ट्र पुत्र को खोया हैं| बम गिरा कर भगत सिंह निर्भीक खड़ा रहा, फाँसी पर लटकते वक्त भी अपने जीद्ध पर अड़ा रहा| एक भाई जब दूसरे का फाँसी का रस्सी खींचा था, आँख भी नम हुई थी आत्मा फूट फूट कर रोया था| उनके हाथ भले ही बंधा था न्यायमूर्ति भले ही अंधा था, फांसी कह कह कर हत्या करना यही ब्रिटिश का धंधा था| ढूंढ रही उस रस्सी को जिसे भगत सिंह ने चूमा था, इस आकस्मिक हत्या देख देख ईश्वर का माथा घुमा था| ऋषि दधीचि ने अपना अंग दान नहीं महादान किया, उस माँ का क्या जिसने अपने हृदय का बलिदान दिया| माँ की आँखें ढूंढ रही वो कहाँ गया वो कहाँ गया, जिसको जन्म दिया और पाला हैं, कहाँ गया वो हत्यकारी जिसने मेरे लाल को मारा हैं| क्या ब्ददुया दू उनको जो मनुज नहीं कहला सकते, क्या माँगू इस धरा से मैं जब कोई मेरा पुत्र नहीं लौटा सकते। ढूंढ रही उस रस्सी को जिसे भगत सिंह ने चूमा था, इस आकस्मिक हत्या देख माँ विधावती पर क्या बिता था| माँ विधावती पर क्या बिता था| माँ विधावती पर क्या बिता था|