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स्नेह से भरा अनमोल

Manasvi sadarangani 30 Mar 2023 कहानियाँ बाल-साहित्य हर एक से प्यार 33629 0 Hindi :: हिंदी

अनमोल जैसा नाम वैसा चरित्र 
यही नाम था उसका अपने नाम अनुसार वह भी अनमोल था सिर्फ मेरे लिए नहीं सबके लिए।
यह बात तब की है जब मैं 12 साल का था मैं और अनमोल सब काम साथ में करते थे कोटा के उस स्कूल में मेरे कुछ ही दोस्त है लेकिन ऐसा कोई भी नहीं था जो अनमोल का दोस्त है ना हो।
 अनमोल बोलता बहुत ही कम था पर उसमें हर एक के लिए बहुत स्नेह भरा था हम जब कभी भी उस स्कूल के बाद घर जाते तो मैं हमेशा बोलता ही जाता था पर वह हमेशा चुप चाप मेरी बातें सुनता रहता था और जब मैं कहता था कि तू चुप क्यों है तो वह कहता था कि बातें कर तो रहा हूं प्रकृति से इन हरे भरे पेड़ों से हवा से सबसे......
        उसकी बातें मुझे कभी भी समझ नहीं आती थी....
एक दिन जब आप ऑफिस से वापस आए तो उन्होंने मुझे बताया कि हमारा ट्रांसफर दिल्ली में हो गया है मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई मैं अनमोल के बिना कैसे रहूंगा यह सोचकर ही मुझे चक्कर आने लगा।
मैं जल्दी से भाग कर अनमोल के पास गया और दिल्ली जाने की बात उसे बताइए अनमोल ने मुस्कुराते हुए कहा यह तो बहुत ही अच्छी बात है अब तुम बड़े शहर में जा रहे हो वहां तुम्हारा स्कूल भी बहुत अच्छा होगा खूब मन लगाकर पढ़ाई करना। 
मैं तो एक स्तंभ की तरह सिर्फ खड़ा होकर उसे देख रहा था, कि यह मुझे कैसे भूल सकता है..
 कुछ ही दिनों में हम दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गए, अनमोल ने सामान पैक करने में मेरी मां की बहुत मदद की और एक मैं था जो सिर्फ रोए जा रहा था । 
अब हम दिल्ली आ चुके थे। शुरू में तो मेरा मन किसी में भी  नहीं लग रहा था मैं हर हफ्ते अनमोल को खत लिखता रहा,पर अनमोल मुश्किल से 1 महीने में एक ही खत लिखता था।
धीरे-धीरे मेरे नए दोस्त बन गए अब खतों का सिलसिला मेरी तरफ से बहुत कम हो गया, एक समय बाद तो मैं जैसे अनमोल को भूल ही गया ।
काफी महीने हो गए थे ना मैंने कभी अनमोल को याद किया और ना ही कोई खत उसने लिखा ।
फिर 1 दिन अनमोल के पापा का फोन आया और उन्होंने कहा कि अनमोल की तबीयत बहुत खराब है, वह मुझसे मिलना चाहता है ।
मैं अगले ही दिन अपने पापा के साथ कोटा पहुंच गया, वहां जाकर देखा तो अनमोल हॉस्पिटल में बिस्तर पर लेटा हुआ था ।उसके पापा ने बताया कि अनमोल के दिमाग की नस फट गई थी, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो इतना शांत प्रिय स्वभाव का और स्नेह से भरा था उसके साथ ऐसा कैसे हो सकता है।
 जब मैं उसके पास गया तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, कि" तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो मैं कभी भी तुम्हें भुला नहीं पाया पर अब मेरे जाने के बाद तुम मन लगाकर पढ़ाई करना" यह कहते ही उसकी सांसें थम गई थी शायद वह मुझे कभी भूल ही नहीं पाया था वह स्नेह का धनी था ।उसने सिर्फ हमें नहीं प्रकृति को और हर चीज को भी अपना पूरा स्नेह दिया था। 
वह अनमोल था और  हमेशा अनमोल ही रहेगा।
दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने अंदर सबके लिए एक समान स्नेह रखना चाहिए चाहे वह प्रकृति हो या इंसानियत.
                                        श्रीमती मनस्वी सदारंगानी

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