Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक चुप्पी (खामोशी) 21321 0 Hindi :: हिंदी
छोड़ छोड़, तू छोड़ चुप्पी। समाज को, ग़लत दिशा दे रही। एक अंतहीन, काली निशा दे रही। समाज को, ग़लत संदेश सुना रहा। चुप्पी को व्यक्ति, अपने हिसाब से भुना रहा। तोड़ तोड़, तू तोड़ चुप्पी। छोड़ छोड़, तू छोड़ चुप्पी। मनुष्य होने के वजूद को, तोल तो सही। सही को सही, ग़लत को ग़लत, बोल तो सही। जब तू, ग़लत को ग़लत बोलेगा। वह आत्मविश्लेषण की, तराजू पर तोलेगा। मन की फोड़ फोड़, फोड़ चुप्पी। छोड़ छोड़, तू छोड़ चुप्पी। मुझे क्या लेना, क्यों बोलूँ मैं ? अपनी ज़बान, क्यों खोलूँ मैं ? एक तरफ, चुप्पी की लकीर है। दूसरी ओर, ज़बान द्रौपदी चीर है। मत ओढ़ ओढ़, ओढ़ चुप्पी। छोड़ छोड़, तू छोड़ चुप्पी। चुप्पी से समाज का, विकृत रूप हो गया। समाज ढहकर, अंधा कूप हो गया। जब तू, चुप्पी के चाँटे लगाएगा। तभी तो, न्याय को काँटे लगाएगा। कह दौड़ दौड़, दौड़ चुप्पी। छोड़ छोड़, तू छोड़ चुप्पी।