Suraj pandit 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Love for myself 14468 0 Hindi :: हिंदी
हर शाम मैं मयुशि मे खो जाता किया चल रहा पता नही हर अस्मा मे नज़रिया खोज रहा किया रहे पता नहीं यू दूर है,मंजिल यहाँ से मंजिल तक जा पाऊंगा यहाँ भी पता नहीं यू चलता राहू रहे पे भटक न जाऊ पता नही होशले है बुलंद मन कि भंगूर ना बन जाए पता नहीं यू लक्ष्य बनाऊ मैं पाषाण ना बन जाए पता नहीं यू रास्त पे चलता रहू साथ ना छूट जाए पता नहीं पता नहीं चलेंते चलेंते मंजिल तक पहुँच जाऊगां किया कलम कि कहानी दुनिया को दिखा पाऊंगा पता नहीं चलते चलते कब मोती बन जाऊंगा यू देखते हि देखते दुनिया मे समा जाऊंगा ।