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ब्रह्मांड जननी मां दुर्गा-यत्र तत्र सर्वत्र माता की ही तेज है

संदीप कुमार सिंह 08 Jul 2023 कविताएँ धार्मिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6025 0 Other :: Other

यत्र_तत्र_सर्वत्र माता की ही तेज है,
माता से ही जीवन में नित खुशियां है।

जन्म_मरण सब तुझ से ही है जुड़ा,
सारे विधि का विधान भी तुझ से ही चले।

मां तेरे हैं अनन्त उपकार और शब्द नहीं,
मां तुझ में ही बीते मेरे सकल दिन और रात।

तेरे ही प्रेरणा से सारे कर्म हो रहें हैं,
और तूं ही कर्मों का फल भी देती है।

तेरे ये विधान मैं मूर्ख समझ न सका,
और समझना भी नहीं चाहता।

क्योंकि तुझमें मेरा विश्वास पूरा है,
श्रद्धा के फूल तुझे अर्पित रोज करूं।

ह्रदय के अनन्त गहराई से तुझे नमन करूं,
चाहता हूं हर सांस में तेरा ही नाम लूं।

तेरे दास बनकर जीवन गुजारने की तमन्ना है,
गमों के आलम में भी तेरे नाम से खुशियां है।

मां तुमसे नम्र निवेदन करता हूं,
सुन ले मेरा पुकार रहो सदा आसपास।

बिन तेरे तेरा ये नासमझ भक्त मायूस हो जाता है,
 आंखों से आसूं की बूंदें टपक पड़ती है।

सांसें जैसे थमने सी लगती है,
सुन मां मेरा प्रार्थना दर्शन दे ही दे।

मां तूं जो चाहे वही हो,
परन्तु गलत हो नहीं सकता।

फिर भी मैया संसार में बड़े दुःख हैं,
मातु इन दु:खों को सदा के लिए खत्म कर दो।

दुनिया में सु:ख ही सु:ख भर दो,
सबके ह्रदय में सदाचार ही भर दो।

हरेक प्राण में भक्ति की बीज बो दो,
दुनिया से अधर्म को सदा के लिए दूर कर दो।

कण_कण में भक्ति की ही मधुर गूंज हो,
रंजों_गमों का कभी सामना न हो ।

हे माता सर्वमंगली हे माता स्वामिनी,
सुन लो मेरा पुकार सारे इच्छा पूर्ण कर दो।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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