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प्रकृति के पंचांग में

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य सर्दी 4523 0 Hindi :: हिंदी

प्रकृति के पंचांग में,
शरद ऋतु है ख़ास।
शुरू होते ही लगाते,
अपने-अपने कयास।
सजने- संवरने बैठती,
लगते कार्तिक मास।
धीरे-धीरे खुदरंग में रंगती,
बन जाती बिंदास।
धुंध में धरती लिपटी,
टप -टप टपके ओस।
पेड़- पौधे गर्दन गिराकर,
खड़े रहे खामोश।
बहती नदी छलकता तड़ाग,
बर्फ़ का आगोश।
धूप धूपित- सी हुई,
गलन पूरे जोश।
चाट, पकौड़े, चाय चुसकी,
गर्म- गर्म पुलाव।
शाल, दुशाला, जरसी, जाकेट,
टोपा बचने का दाव।
गोंद लड्डू, हल्दी दूध,
सीरा करे बचाव।
जमने के डर से,
डरता -डरता जले अलाव।
मारे डर के देर से उठता,
जल्दी सोता सूरज।
रेल चलती रुक रुक,
उड़ने वाले की उतरती धज।
गाड़ी, मशीन में दम भरता,
घरर घरर इंजिन मरज़।
नीली धवल- सी हुई,
धरा दिनचर्या हरज।
ओस हुई बेहोश,
गिरते-गिरते अटकी।
गिर ज़मीं फिर जमी,
आई जो भूली-भटकी।
छूटी क़ातिल कंपकंपी,
चर्र-चर्र हड्डी चटकी।
हवा कभी बदली मलकी,
कभी आंख मिचौनी खेले चिलकी।

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