Bholenath sharma 19 Apr 2024 कविताएँ समाजिक सिर झुका बैठा हूँ 330 0 Hindi :: हिंदी
जमाने की धूप से तपकर अब बराद के छाँव में बैठा हूँ शहरो मे सकून कहा इसी लिए गाँव में बैठा हूँ परिवार को छोड़ कर तेरे लिए विभूति शहर आया हूँ शौक करने की उम्र में जरूरतो के आगे सिर झुका बैठा हूँ