Poonam Mishra 08 Nov 2023 कविताएँ समाजिक कुछ समय पहले की बात 13540 1 5 Hindi :: हिंदी
कुछ समय पहले तक ऐसी उदासी न थी चारों ओर ऐसा सन्नाटा ना था मुर्गे की आवाज से पक्षियों की चहचहाट से होती थी सुबह शुरुआत न जाने कहां से दोपहर में आ जाते थे कई छोटे-छोटे बच्चे गांव के उसे बरगद की छांव में पूरा दिन खेलते रहते थे बीत जाता था समय खेलते लड़ते झगड़ते उनका मैंने देखा है कभी-कभी वह एक दूसरे को डांटेते तो कभी समझाते थे वहीं कुछ दूर पर बैठ जाते थे मैंने देखा है साज ढले पक्षी अपने घर को लौटते हुए एक दूसरे से प्रणय निवेदन करते हुए अब जाने क्यों ?मुझे नहीं दिखते वह पंछी वह छोटे-छोटे बच्चे अब नहीं रही वह चिड़ियों की चहचहाट वाली सुबह आवाज न जाने कहां खो गए? विकास के नाम पर यह सब हमारे घर के पास से कभी-कभी खोजती है आंखें उन पलों को जो इन आंखों के सामने से गुजरी है लेखिका पूनम मिश्रा
5 months ago