Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 69202 0 Hindi :: हिंदी
कविता- कबाड़िया ज्ञान गंगा में डुबकी नहीं लगाया, मैं बेबस,लाचार,निरक्षर,अनाड़ी। पढ़ता जिस पुस्तक के पन्नों को, गलियों में बटोर रहा हूं कबाड़ी।। टूटे हुए कलम से नसीब लिखा, वाह! विधि के विधान विधाता। बेसहारा भटक रहा हूं दरबदर, मैं खुद को पहचान नहीं पाता।। फटी पुरानी चिथड़े में लिपटा तन, उड़ते धूल और मिट्टी से नहाता हूं। आवारा सारमेय है मेरे प्रिय साथी, कूड़ेदान की बचा खुचा खाता हूं।। हाथों में पकड़ा हूं चौड़ी भारी बोरी, नजरें ढूंढ रही है फालतू सामग्रियां। पढ़ रहा हूं जीवन के पाठ प्रतिदिन, मेरे पास है मानो अगणित डिग्रियां।। बेच आता हूं कौड़ी के भाव ईमान, कर्म,दुःख,त्याग का कोई मोल नहीं। कोई मानव आए बन कर भगवान, बदल दे मेरी भाग्य,मैं हूं यहीं कहीं।। कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)।