Sudha Chaudhary 10 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6895 0 Hindi :: हिंदी
मेघ की काली घटा में देखने दो गौर से भाव विह्वल हो गए तरु बरसात की एक बूंद से। प्रकृति का यह रंग देखो बरसने का ढंग देखो चारों तरफ पानी ही पानी मेढ़को का प्रपंच देखो। आज पेड़ झुक गए हैं प्यास से तरस रहे थे गर्जनों का शोर है नहीं लगता भोर है। तपन आज मिट गया कल झुलस रहा था दिन खुशी के मारे झूम लो आया पावस का दिन। बदलियों के रुप में विहाग आज मिट रहा चंचला तड़प रही निशा प्रकाश भर रही। लहलहा उठे खेत धान जो रोप गई खुश हुए ताल पोखर बरसात जो आ गई। हरे हरे खेत हैं बाग और खलियान है खाली नहीं रहा कहीं प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली है। झांकती धरती कहे खुशी के यही दिन सलिल अनिल सब मिल गए बरसात के ही दिन। सुधा चौधरी बस्ती