Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

शिक्षा जगत के नासूर

YOGESH kiniya 16 Mar 2024 आलेख समाजिक शिक्षा विभाग की आज की वर्तमान दशा पर तंज 3856 0 Hindi :: हिंदी

शिक्षा जगत के नासूर 

हम उस देश के सौभाग्यशाली शिक्षक हैं ; जिस देश को विश्वगुरु की महिमा से मंडित किया गया है । नि:संदेह हमारा यह स्वर्णिम अतीत हमे गौरांवित तो करता ही है ; लेकिन साथ ही साथ हमें यह सीखने  के लिए मजबूर भी करता है कि हमारा अतीत कितना संस्कारवान, आदर्शमय और आध्यात्मिक तथा बौद्धिक दृष्टि से अनुकरणीय रहा होगा तब जाकर हमें विश्व गुरु की महिमा से महिमा मंडित किया गया होगा। 
किसी भी राष्ट्र का उत्थान या पतन इस बात पर निर्भर करता है कि इसके नागरिक किस स्तर के हैं और यह स्तर बहुत करके वहाँ की शिक्षा-पद्धति पर निर्भर रहता है। रा
हमारे भारतवर्ष की शिक्षा पद्धति पूरे विश्व में हमेशा अनुकरणीय रही है। और इसको अनुकरणीय बनाने में अपना सर्वस्व त्याग किया ,हमारे तपस्वी ,त्यागशील ,चरित्रवान ,निष्ठावान ,आदर्शमय  गुरुजनों ने। और ऐसे महान गुरुजनों के कारण ही हमारे देश में गुरु को भगव

                    गुरु गोविंद दोउ खङे, काके लागूं पांय ।
                    बलिहारी गुरु आप की, गोविंद दियौ बताय ।।


मेरे इस आलेख का उद्देश्य यह नहीं है की आप सबको गौरवमय गुरु महिमा का स्मरण कराऊं । वो महिमा तो कालजयी हैं,आप उसे विस्मृत कर भी नहीं सकते हैं। मेरे लेख का प्रतिपाद्य है हमारी इस गौरवमय गुरु महिमा की गरीमा में दिन प्रतिदिन होते ह्रास के कारणो को उजागर करना। दिन-प्रतिदिन अखबारों में गुरू-शिष्य की गरीमा को तार-तार करने वाली खबरें प्रकाशित होती रहती हैं। 
क्या यह निंदनीय परिदृश्य किसी अल्पकालीन परिवर्तन का परिणाम है? नहीं , कदापि नहीं। इस बदलाव ने एक लम्बा सफ़र तय किया है; तब कहीं जाकर इस कलयुगी कालखंड के समक्ष ऐसे शर्मनाक परिदृश्य उत्पन्न  हुए हैं। 
 गुरु और शिष्य का नाता पिता और संतान के समान होता है। पिता अपनी संतान से बेहद स्नेह रखता है लेकिन इस स्नेह के साथ-साथ वह अपनी संतान के जहन में इतना भय भी पैदा करके रखता है की, वह संतान अपने जीवन में कोई गलत कदम उठाने से पहले हजार बार पिता के अप्रत्याशित और असहनीय गुस्से के बारे मे सोचती है।  पिता और संतान के बीच इस अदबमय भय के कारण ही तो आजतक  हमारी संस्कृति सुरक्षित और संस्कारवान हैं। क्या गुरु का दायित्व नहीं बनता हैं कि वह अपने विद्यार्थियों के प्रति संतान के समान स्नेह रखते हुए उनके मन में अदबमय भय पैदा करे ? ज़रूरी बनता हैं। 
     विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी मिट्टी के कच्चे घड़े के समान होते हैं । वे नासमझ और किशोरावस्था की नाव के नाविक होते हैं। उनको इस सफ़र में मिलने वाले स्नेह का अभी अनुभव और अन्तर भी पता नहीं है। कई बार ये नासमझ विद्यार्थी शिक्षक के स्नेह का भी अन्य अर्थ लगा बैठते हैं। परन्तु उस समय उस शिक्षक को पिता धर्म निभाते हुए उस विद्यार्थी को स्नेह का सही अर्थ समझाते हुए उसके मन में अदब का ऐसा भाव पैदा करें कि भविष्य में वह अपने किसी  गुरु के प्रति इस प्रकार के कुविचार लाने से पहले हजार बार सोचे। ।लेकिन वास्तविकता में हो क्या रहा है कुछ विक्षिप्त मानसिकता वाले शिक्षक नादान और नासमझ विद्यार्थियों के इस स्नेह  पर अपने कुकृत्यो की कालिख पोतते जा रहें है।
 इस कलयुगी शर्मनाक परिदृश्य के उत्पन्न होने का एक प्रमुख कारण है  विद्यालयों का वर्तमान दूषित वातावरण। क्या है यह, दूषित वातावरण आइए देखें। संचार के बहुआयामी साधन मोबाईल ने इस वातावरण को सर्वाधिक प्रभावित किया है। शिक्षको के मोबाइल अपने चेहते विद्यार्थियों के हाथों में रहते हैं । शिक्षक अपने इन चेहेते विद्यार्थियों के साथ इस प्रकार से फोटो सेशन करवाते हैं की मानो, वे गुरु-शिष्य न होकर कोई सहपाठी हो। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर गुरु अपने शिष्य के साथ अंतरंग मित्र के समान व्यवहार कर रहे हैं। जब आप सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर अपनी संतान के साथ इतने अंतरंग होकर व्यवहार नहीं करते है ,तो फिर अपने विद्यार्थियों  के साथ इतना अंतरंग होकर व्यवहार करना कहां तक उचित होगा  ? विद्यार्थी तो नादान और नासमझ है।  जबकि आप परिपक्व,अनुभवी और एक जिम्मेदार पद पर आसीन शिक्षक है उनके  गुरू हैं। आपका यह व्यवहार कभी भी सभ्य समाज में स्वीकृत नहीं हो सकता। 
    बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि राजस्थान के माननीय शिक्षा मंत्री महोदय ने संज्ञान लेते हुए इस प्रकार के शिक्षकों पर कठोर कार्यवाही करने का बीड़ा उठाया है। परंतु मेरा मानना है किसी भी शिक्षक का चरित्र एक दिन में खराब नहीं होता है । उसके चरित्र पतन की प्रक्रिया सतत होती है । अगर इस प्रकार के पतित सहकर्मी की जानकारी संस्था प्रधान को हो ,तो उनको संज्ञान लेते हुए तुरन्त कठोर कार्यवाही अमल में लानी चाहिए। जिससे एक नासमझ विद्यार्थी की जिन्दगी पर दाग लगने से रोका जा सके। इस प्रकार के दूषित मानसिकता वाले शिक्षक कभी भी समाज का भला नहीं कर सकते । ऐसे लोग पूरे शिक्षक समुदाय के लिए नासूर के समान  है । ऐसे लोगों की तरफदारी करने वाला हर इंसान गुनहगार है।

योगेश किनिया , (व.अ. हिन्दी) 
(राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से पुरस्कृत)
स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूल सिवाना
जिला- बालोतरा

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

किसी भी व्यक्ति को जिंदगी में खुशहाल रहना है तो अपनी नजरिया , विचार व्यव्हार को बदलना जरुरी है ! जैसे -धर्य , नजरिया ,सहनशीलता ,ईमानदारी read more >>
Join Us: