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मैं देख रहा हूं-दिन भर सूरज की आँखों से तप कर

आकाश अगम 05 Jun 2023 कविताएँ अन्य #poetry #kavita #hindikavita #shayri #akashagam 5634 0 Hindi :: हिंदी

मैं देख रहा हूं
दिन भर सूरज की आँखों से तप कर
शीतल संध्या से नज़रें मिलाती सड़क पर
दौड़ रहे कुछ लड़कों को
मगर मैं नहीं जानता
कि इनमें कौन पैरों से भाग रहा है 
और कौन जीवन से!

सामने
सबको समानता से साधे हुए नर्म मिट्टी में
नवीन स्फूर्ति से भरी हुईं कोपलें
क्रिकेट खेल रहीं हैं
और मैं देख रहा हूं उन्हें खेलते हुए 
बहुत देर से...
फिर भी मैं नहीं जानता, 
कौन गिर पड़ा
रन लेने की जल्दी में हड़बड़ा कर
और कौन पहुंच गया इस पार से उस पार...
कौन आउट हुआ, कौन खेल गया
कौन हार गया कौन जीत गया!

अनंत संभावनाओं से भरे हुए 
इस अनंत आकाश में
देख रहा हूं
कि बहुत से पंछी उड़ रहे हैं
जबकि मुझे नहीं मालूम
किस पंछी के पंख शिथिल पड़ गए
और कौन चीरता चला गया हवाओं को
कौन सा पंछी अपने बच्चों के लिए
घोंसला बनाने की फ़िक्र में उड़ता जा रहा है
जो उड़ रहा है ताकि रह सके धरती पर..
और कौन है 
जिसे कुछ नहीं बनाना लेकिन 
जिसे हो चुका है प्रेम इन ऊंचाइयों से
जिसे हवा में तैरना अच्छा लगता है!

जीवन में देखना
और
जीवन को देखना
दो अलग-अलग बातें हैं!

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