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हक की आवाज

SHAHWAJ KHAN 30 Mar 2023 शायरी समाजिक हक की आवाज, इंसानियत, जुल्म, शायरी , राजनीतिक शायरी, सामाजिक शायरी 88815 0 Hindi :: हिंदी

                      हक की आवाज

   सुना है की अब हक की आवाज दबने लगी है 
   झूठ फरेब और जुल्म की आग लगने लगी है ।

  आज फिर एक बेटी की आबरू तार तार हो गई 
  क्या सच मे अब  इंशानियत ज़ार ज़ार हो गई ।

  क्या लिखू इसके आगे मेरे एहसास खोने लगे है 
  देख कर उस बेबस माँ के आँसु मेरे अल्फाज 
  रोने लगे है।

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