संदीप कुमार सिंह 29 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5620 0 Hindi :: हिंदी
पैसा देखकर आकलन करती है, लड़कियां आज तब प्यार करती है। पास गर पैसा है तो बात ही गज़ब, फिर दुःख को भी सहन करती है। दुनिया में पैसा का ही बोलबाला है, जान_जानू भी पैसा ही करती है। नाज़ नखड़े तो सहने ही पड़ते हैं, फिर भी जानू शक भी करती है। दिवस भर मेहनत से थका शरीर, लेकिन जानू हिसाब तो करती है। कल दोस्त से मिलने गया जनाब, जानू इधर शक को ही करती है। कमाते कमाते उम्र बीत रहा है, जानू आज भी पैसा ही करती है। पैसा जिन्दगी में गजब होड़ है, पैसा_पैसा पर दुनिया मरती है। संदीप पैसा से दुनिया चलती है, जान_जानू भी ठीक ही करती है। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....