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बचपन की याद

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बचपन की याद 59769 0 Hindi :: हिंदी

हम, स्कूली शहज़ादे।
काज चबी पैवंदी कमीज़, कुछ हंसकर कुछ रोकर।
तह कर सिरहाने रखते, नदी खार में धोकर।
चुग़ली करते अंगूठे, जूतों से बाहर झांकते थे।
एक तनी का बस्ता ले, स्कूली डगर पकड़ते थे।
हमारे सामने क्या, लगे साहबज़ादे।
हम, स्कूली शहज़ादे।
उचक- उचकर हाज़िरी, बोलने का कितना चाव।
एक साथ सारे, बच्चों की कांव-कांव।
क कबूतर, कितना मनोयोग से बोलते।
मुंहानी में संख्या सौ पर, पूरा ज़ोर तोलते।
विजय मुद्रा में दौड़ लगाते, पीठ पर बस्ता लादे।
हम, स्कूली शहज़ादे।

कुछ पढ़ने, कुछ फ़ाड़ने से, किताब फट जाती थी।
मोरपंख, मुड़े पन्नों से, विद्या माता आती थी।
जान से भी प्यारी थी, विद्या माता की सौगंध।
सौगंध देकर उतारने में, कितना आता था आनंद।
सौगंध दे, उतारने के वादे।
हम, स्कूली शहज़ादे।

हम, स्कूली शहज़ादे।


।
पट्टी साफ़ करने में, थूक ने साथ दिया था।
चुपके से पेंसिल का, स्वाद भी चख लिया था।
क़लम सुधारने के, प्रवीण मिस्तरी खुद थे।
स्याही के वो निशां, जीवन निशां से क्या कम थे?
वो गुरु जी, उनका डर, मेरा साथी राधे।
हम, स्कूली शहज़ादे।
गुरु जी से पिटना भी, कितना लगता था अच्छा।
शैतानी कर साथी फंसाना, याद आता है गच्चा ।
स्कूली वो जीवन, यादें खट्टी- मीठी।
धन्य है स्कूल, वो स्कूली मिट्टी।
अब ये जीवन, जीवन से झूठे वादे।
हम, स्कूली शहज़ादे।
हम, स्कूली शहज़ादे।





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