Raj Ashok 13 Nov 2023 कविताएँ समाजिक माँ 15077 0 Hindi :: हिंदी
जीवन का .... शुरू ,सफर अब है ...... पहला कदम, पहली ड़गर .... अब है सिख रहे है। चलाना ,योही ... गिरते संभलते । नजरों के आगे ,जब अपनी माँ रहती है। चले। आवों ! तुम बैटा बस इतना हमेशा इतना कहती है। और, हम भुल जाते है। हर ,डर लड़खडाते कदमों का दिल मे खोफ, नहीं रहता जरा भी । चुनौतियों , को हम देते फिर अलग चुनौती बाज,के पंजो ,से हम शिकार छीन लाते। हमेशा माँ के आशीषो से, दीपक के जैसे , जीवन जग-मंग रहता । प्यार का ऐसा ये एक नाता । कच्चे घागों से ये रिस्ता रभ बनाता । पर एक निभाता, और एक भुल जाता । फिर बुलावा, कभी नहीं माँ का आता। अर्थ, क्या है ? अब जीवन का, जब जीवन ही नीरस हो जाता। एक उमीद मे, कोई सो साल जी जाता। माँ, के बुलाऐ बैटा क्यो नहीं आता।