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एक धार्मिक कहानी

Archana Singh 17 May 2023 कहानियाँ धार्मिक 7171 0 Hindi :: हिंदी

नमस्ते दोस्तों 🙏🙏

दोस्तों  ! आज की कहानी का शीर्षक है ....
 " पवित्र मनोवृति " !

कहते हैं जिसकी सोच पवित्र हो वो अगर मजबूरी में गलत काम भी करता है तो वो पाप का भागी नहीं होता है ..... क्योंकि वो गलत काम उसकी मजबूरियां उसे करवा रही है ।
हा जानबूझकर अपनी मनोवृति को गलत रखने और गलत कार्य करने से आदमी पाप का भागी होता है ।
चलिए  ! इसी को सत्यापित करते हुए आपको एक धार्मिक कहानी सुनाती हूं , जो मेरे दादाजी ने बहुत पहले मुझे सुनाया था ।

एक मंदिर में एक पुजारी रहते थे और उसी मंदिर के रास्ते में एक  " नर्तकी " यानी नाचने वाली भी रहा करती थी ।

 पुजारी हर रोज मंदिर जाते समय उस लड़की के घर की ओर देखकर उसकी बुराई करते रहते थे और उसे श्राप भी दिया करते थे ,,, " ये औरत नर्क में जाएगी ,,,, इसके  मृत शरीर को आग देने वाला भी कोई नहीं होगा ,,,,, इसका उद्धार कभी नहीं होगा  । ये अपने यौवन और खूबसूरती से सभी को अपने वश में करती है ,
उन्हें व्यसनशील बनाती है । इसका कभी भला नहीं होगा ,,,, कभी नहीं ....!

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उधर वो नर्तकी मजबूरी में ये काम करती थी, पर सच तो ये है कि वो सदा परमात्मा से अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगती थी  । 
उनसे रोज प्रार्थना करती थी कि मुझे इस नरक से मुक्ति मिले  । वो किसी का जानबूझकर बुरा नहीं करती थी और ना चाहती थी कि उसके कारण किसी का बुरा हो  ।
वो तो सिर्फ अपने नृत्य कला से लोगों का मन बहलाती थी  ।

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संयोगवश दोनों की मृत्यु एक ही दिन हुई ,,,, यानी  मंदिर के पुजारी और उस नर्तकी दोनों का  ।
दोनों चित्रगुप्त भगवान के पास पहुंचे ।

 दोनों के कर्मों के लेखा-जोखा से पता चला कि मन - ही - मन बुरा भाव रखने के कारण पुजारी के पाप का पलड़ा भारी हो गया  ,,,,, 

जबकि मन - ही - मन प्रायश्चित रखने के कारण , क्षमा याचना करने के कारण नर्तकी उत्तम फल की अधिकारी बन गई ।

ये जानकर पुजारी बहुत आक्रोशित हुए और उन्होंने पूछा  :" ये नीच , पापी , कुलटा उत्तम फल के अधिकारी बन गई और मैं इतने दिनों तक पुजारी रह कर पाप के फल का भागी बन गया ।  मुझे नर्क का द्वार मिला और इसे स्वर्ग का ....? 
यह तो घोर अन्याय है  ।

तब चित्रगुप्त भगवान ने कहा :"  कर्मों का फल तो मनोभाव यानी मनोवृति  के अनुसार ही मिलता है  । बाहर के कर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण तो ये होता है कि कर्म करते समय आपकी मनोवृतियां कैसी है  ।
आप किस भाव से कौन सा कर्म कर रहे हैं ।अगर आपके मन में पाप है और पाप की भावना से कोई काम कर रहे हैं तो  पाप की गणना में ही जाएगा ------- और अगर आपकी मनोवृति में कोई सत्कर्म है और कर्म करने समय आप पवित्र मनोवृति से कर रहे हैं तो उसका फल पवित्र ही होता है ।
वस्तुतः आपने धर्म-कर्म जितने भी किए बस इस नर्तकी को ध्यान में रखकर किए और आपके सारे शुभ फल इस नर्तकी की अवहेलना में ही पाप ले बदल गए " । 

इसीलिए कहा जाता है दोस्तों  ! कि मन मे हमेशा  पवित्र कार्य करने की भावना रखिए ।  अगर हमारे अंदर पवित्र मनोवृतियां रहेगी तो हम कभी किसी का अनजाने में भी बुरा नहीं कर पाएंगे ..... क्योंकि हमारे दिमाग में किसी का बुरा करने की बात क्षण भर के लिए भी नहीं आएगी  ।

अनुमति दीजिए दोस्तों ! अपनी अर्चना को , फिर अगले किसी कहानी के लिए ,
तब तक के लिए हमेशा की तरह ,
खुश रहिए , मस्त रहिए ,
हंसते - मुस्कुराते रहिए !
धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐

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