Alok Vaid 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #कविता #हिंदी_साहित्य #बाल_साहित्य #प्यार #मोहब्बत #अंबेडकर #दलित 13679 0 Hindi :: हिंदी
छोड़ संस्कृति विदेश भागते ऐसा हाल हुआ है अपने मन की सब करते है ऐसा कमाल हुआ है नही कोई ईश्वर जग में ऐसा उनका कहना है पढ़ लिखकर सोचे ये मन में यही अपना गहना है मात पिता कभी ईश्वर थे लेकिन अब ऐसी ओलाद नहीं डिग्री लेकर गुमानी यूं समझते सब यही मात पिता नहीं मात पिता और ईश्वर नाम का इनके मन में ख्याल नहीं आशिकी के चक्कर में फिरते सोचे मात पिता को खबर नहीं मात पिता को इश्वर से ऊपर दर्जा देना वह भी एक जमाना था आज के युग में कोन जाने मात पिता को यह भी एक जमाना है कहै "आलोक" पढ़ाई करो लेकिन मात पिता के बिना नहीं अगर तुम ऐसा करते हो तो बर्बादी है खैर नहीं विदेश की संस्कृति को ना अपनाओ अर्धनग्न की चलना है बेटी पुराने भारत की देखो खादी पूरे शरीर पर पड़ना है संस्कृति आज भी बची है कुछ युवाओं को देखा है पढ़ाई के साथ मात पिता को पूरा दर्जा देते देखा है कुछ युवा नही सब हो जाओ अगर देश बचाना है अब भी ना सोचा तो एक दिन ये देश गिर जाना है छोड़ संस्कृति विदेश भागते ऐसा हाल हुआ है अपने मन की सब करते है ऐसा कमाल हुआ है आलोक वैद "आजाद" एम ० ए ० (समाज शास्त्र)
I have been interested in literature since childhood.I have M.A or LL.B Education qualification...