Rahul verma 01 Nov 2023 कविताएँ समाजिक #yq neerstar trrahul verma 10292 0 Hindi :: हिंदी
क्षण भंगूर सा है ये मानुस, दर्पण की तरह बिखर जाये, मन मे ले जब दृढ- संकल्प, हीरे की जैसे निखर जाये, फिर भी ना जाने मुझे यहाँ, भांति भांति के पात मिले, बागवान की बगियां मे भी, फूल दिन और रात खिले, कुछ पत्तों मे जोश यहाँ, संदेश उमंग का देते है, कुछ पत्ते मुरझाकर् के, सूख हवा मे उड़ते है, कुछ फूलो को यहाँ प्यार से, मन मर्जी के तोड़ा जाता, कुछ फूलो का रुख़ यहा, तूफ़ानो से भी ना मोडा जाता, कुछ फूलो को मेने यहाँ पर, मंदिर मे चढ़ते देखे है, कुछ फूल हुए है ऐसे भी, जिन्हे अर्थी पर चढ़ते देखे है, क्यू हिम्मत को हारा है तू, चल उठ तेरा मनोबल जगा, चिपक गया तू निश्चित जगह पर, चल उठ तेरा आलस भगा, तू चाहे तो रूख बदल दे, आते हुए तूफ़ानो का, तू चाहे तो वो देश बदल दे, जहाँ चले सिक्का बेईमानों का। -राहुल वर्मा (नीर)