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भाव से भव तर जाता है

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक This is religion base poem and most of guiding activity of morality. 16264 0 Hindi :: हिंदी

भाव बिना सुना जग है, 
भावों से भव तर जाता है! 
श्रद्धा है जगत का परम भेंट, 
जिससे हृदय भर जाता है!! 
                  भावों से किसी ने मन वारा,
                  भावों से किसी ने हृदय को! 
                  कर्मों के रथी बन बांध लिए, 
                  ईस भव के परम सु:ख: चयनो को!! 
जो चला रहे यहा कर्म सभी, 
उसको क्या भेंट चढ़ाऐं जग! 
दर्शन से नयन हो परम धनी, 
होती अंधियारें जग मग जग!! 
                          भावों कि अमर है तृप्त धरा, 
                          जो विष अमृत कर जातें है! 
                          दे दिऐं अनजाने विष भावपुर्ण, 
                          जीसे बुद्ध समझ खा जातें है!! 
कही अमर धरा का भार है सु:ख:, 
कहीं ये भावों का बन्धन है! 
भावों मे बंध ईश्वर अवतार लिए, 
श्रद्धा का परम अभीवादन है!! 
                          भाव ने भव को तार दिया, 
                          श्रद्धा, अर्पण, अभिवादन से! 
                          करती जगती परमार्थ है जय, 
                          भक्ती, शक्ती के वादन से!! 
है अचल शुलोक श्रद्धा अर्पण, 
कहीं खाए जुठन सबरी के! 
कहीं छिलके केला का करतें सेवन, 
बंध भावों मे भक्ती के!! 
                           कहीं चबा रहें कच्चे चावल, 
                           भावों मे बंधें माधव भक्ती के! 
                           सर्व राज पाट कर त्याग तेज़, 
                           भावों के अमर कसौटी को!! 
नयनों मे रखे भावों कि ज्योत, 
हृदय कर श्रद्धा प्रदिप्त दिप्त! 
श्रद्धा के चढ़ाऐं नैन लिए, 
कर दिए ज्ञान से महा दिप्त!! 
                      कही महा भोग भी त्याग दिऐ, 
                      करने सेवन भक्ती का फल! 
                      बंधता है भव तारक भावों से, 
                     ईस भाव का होता सफल संजोग!! 
ईश्वर खाएं दो कारण से,
ऊदर श्रुब्धा या भाव तृप्त! 
भाव भक्त के करती कंवलीत, 
गीता सार श्री कृष्ण रचीत!! 
                  भावपुर्ण नमन भव तारक को, 
                  जो भाव हृदय में भरतें हैं! 
                  ये भाव ही है जीस बंधन में बंध कर, 
                  ईश्वर धरती पे बार - बार उतरतें हैं!! 
भक्तों के हित अवतार धरें, 
जो वशुधा को अमर कर जाता हैं! 
भाव बिना सुना ज़ग है, 
भावों से भव तर जाता है!! 
                    करता तो है कर्म प्रयत्न अधिक, 
                    श्रद्धा बस चर्म को पाता हैं! 
                     श्रद्धा है जगत का परम भेंट, 
                     जिससे हृदय भर जाता हैं!! 
कवी  :- अमित कुमार प्रशाद
কবী  :- অমিত কুমার প্রশাদ
Poet  :- Amit Kumar Prasad

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