Sanam kumari Shivani 02 May 2023 कविताएँ समाजिक 10325 0 Hindi :: हिंदी
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, हर जीवों में एक आशा है। दिल में है अरमान यहीं कुछ कर जाए कुछ कर जाए। सूरज सा तेज़ नही मुझमें दीपक सा जलता देखोगे अपनी हद रोशन करने से, तुम मुझे कब तक रोकोगे मैं उस माटी का वृक्ष नही जिसको नादिओ में सींचा है। वंजर माटी में पल कर मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है। में पत्थर पर लिखीं इमारत हूं तुम शीशे से कब तक तोरोगे मिटने बाला में नाम नही तुम मुझे कब तक रोकोगे इस जग में जितने जुल्म नही उतने सहने की ताकत है2 ताने के शोर में ही रहकर सच कहने की आदत है। में सागर से भी गहरा हूं तुम कितने कंकर फेकोगे चुन चुन कर आगे बढूंगी तुम मुझे कब तक रोकोगे झुक झुक कर सीधा खरा हुआ अब झुकने का शौक नही 2 अपने ही हाथों रचा स्वेंग को अब मिटने का खोफ नही। तुम हालातो की भट्टी में मुझे जब जब झोकोगे तब तब सोना बनूंगी में अपनी हद रोशन करने से तुम मुझे कब तक रोकोगे। By -📝 sanam kumari Shivani