Sudha Chaudhary 10 May 2023 कविताएँ अन्य 6974 0 Hindi :: हिंदी
जो दीया जला था सीने में वो दिवस नहीं था जीने में ऐसी बोली तुम बोले थे जो गरल नहीं था पीने में। कितनी मादक जीवन झंझा गिरती उठती थम जाती है बस पहने मूक सरलता रह जाती इस कोने में। है वही अधूरी गाथा यह जिसका भाव नहीं है कोई जब तक ठहरे ये पांव हर गए किसी के कहने में। हालत ऐसी होती है मजबूर नहीं है कोई गिरना सबको आता है उठ जाए भला है जीने मैं। उसमें वाणी मत देना अनुराग नहीं है उसमें भौतिकता है सब कुछ कुछ साथ नहीं है रहने में। रवि शशि सा दिखता है अंधकार की रव में कितने शुन्य लिखें हैं खाली इस जीवन में। सुधा चौधरी