औचित्य – शिल्पा शर्मा
“यह मैं क्या सुन रही हूं शन्नो?”
“क्या यार?”
“लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं”
“लोगों का तो काम ही है यार”
“अच्छा और तू !
तुझे शर्म नहीं आई”
“तू क्या कह रही है यार?”
“तू कोई कॉलेज गर्ल नहीं है शन्नो, विवाहिता है
दो बच्चों की माँ”
“तो क्या यार”
“देख तू यह बहुत गलत कर रही है”
“तू नहीं समझेगी यार, तू क्या कोई नहीं समझेगा”
“तू पागल हो गई है तू पहले तो ऐसी नहीं थी”
“मैं क्या समझाऊं यार, ही मेक्स मी…..”
“ही मेक्स यू क्या ?”
“देख मैं तेरी फ्रेंड होने के नाते समझा रही हूं तुझे”
“जैसा सब समझते है ऐसा कुछ नहीं है”
“तो तू बता फिर बात है क्या ?”
“जानती है आज सुबह …..”
“क्या आज सुबह…”
“वह मुझ पर चिल्लाए”
“तो, यह तो होता ही है”
“बोले -खाना बनाने के सिवा करती क्या हो तुम,
एक काम ढंग से नहीं कर सकती”
“बेटे को तो एक से एक रिश्ते आ रहे थे
एक यही…….
सासू मां कुढ़ रही थी”
“5:00 बजे से उठकर लगी थी
आज बस आलू उबलने में देर हो गई
नाश्ता तैयार था बच्चों को पसंद नहीं आया
अरुण की मम्मी तो उसको हर रोज लंच बॉक्स में नई-नई डिश डालती है ….
मैं भी तो पूरी कोशिश करती हूँ ना!
पर तब भी कोई खुश नहीं होता
10 सालों से लगी हूं खुद को मिटा कर…
बैठी चुपचाप आंसू बहा रही थी तभी उसका मैसेज आया –
” गुड मॉर्निंग शोना, कैसी हो? मिस यू सो मच यार काश ! अभी मेरे पास होती |
खैर, ब्रेकफास्ट टाइम से कर लेना और अपना ख्याल रखना,
हमेशा मुस्कुराती रहना, लव यू”
गीले गालों के बीच मुस्कुराहट-सी तैर गई |”
सोनाली फोन काट चुकी थी |
और मैं ….
मैं खड़ी
उस मुस्कुराहट का
औचित्य
ढूंढती रही
देर तक…….
शिल्पा शर्मा
चम्बा(हिमाचल प्रदेश)
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bahut achha hai.