virendra kumar dewangan 20 Jul 2023 आलेख समाजिक Social 5626 0 Hindi :: हिंदी
70 से 80 फीसद साक्षरता और शिक्षा के बावजूद देश के लोगों में अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग अंधविश्वासी तौर-तरीकों में जहां अपना धन लुटाते हैं, वहीं सबक लेने की कोशिशों से जी चुराते हैं। यहां तक कि कई मर्तबा लोग अंधविश्वास से नाता छुड़ाने के प्रयासों में फिर से अंधविश्वासी आस्थाओं में डूबकी लगाना अपनी हेठी समझने लगते हैं। कार्यस्थल पर अंधविश्वास स्टाफिंग कंपनी टीमलीज सर्विसेज की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, कार्यस्थलों पर अंधविश्वास को 62 प्रतिशत कर्मचारी मानते हैं। वहीं, 51 फीसद कर्मचारी वास्तु, भाग्यवाद के मुताबिक चलते हैं और वास्तुशास्त्र व फेंगशुई का अंधपालन करते हैं। इसमें भाग्यवाद पर भरोसे के लिए कीमती पत्थरों को अंगूठी में पहनना, रंगीन वस्तुओं को धारण करना, काला धागा बांधना, ताबीज धारण करना, आम बात है। वस्तुतः, ऐसे लोग खूब पढ़े-लिखे, आधुनिक व पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होते हुए भी अंधविश्वासी टोटकों को करते रहते हैं, जो इनके ज्ञान और विवेक को बौना साबित करने के लिए काफी होता है। अध्ययन रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि भारत में कॉर्पोरेट जगत का प्रबंधन व व्यापारीवर्ग आम तौर पर कई तरह के अंधविश्वासों को मानता है। इसमें पसंदीदा गुडलक चार्म जैसे- लॉफिंग बुद्धा, म्यूजिकल फाउंटेन, मेंढक, कछुआ, नीबू व मिर्च, लाल कपड़े में नारियल, बांस का डंडा भी आफिसों में लकी चार्म के रूप में बांधे जाते हैं.। कछुओं का मायाजाल ‘नोटों की बरसात’ के लिए कछुओं की तस्करी देश में कच्छप तस्करों के द्वारा धड़ल्ले से की जाती है। दरअसल, कछुओं की खरीद-फरोख्त तंत्र साधना के लिए होती है, इसीलिए कछुए बेचारे काले बाजार में 2 से 4 लाख रुपये में बेचे जाते हैं। इसमें भी 18 से 20 नख वाले कछुओं की भारी मांग रहती है। इसकी कीमत तांत्रिक मुंहमांगी देते हैं। नवरात्रि से दीपावली तक तंत्र साधना के लिए प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण जिलों में कछुए के खरीदार तस्करों की आवाजाही एकाएक बढ़ जाती है। फलस्वरूप, जो कछुआ सामान्य दिनों में हजार-दो हजार रुपये में बिकता है, उसकी मांग नवरात्रि में सहसा बढ़ जाने से 2 से 4 लाख रुपये में बिकने लगता है। पशुपक्षी क्रूरता अधिनियम को धता बताकर हालांकि कछुओं की तस्करी बारहों महीने होती रहती है, लेकिन नवरात्रि से दीवाली तक तंत्र साधना के काम आने के चलते इनकी मांग में यकायक इजाफा हो जाता है। इससे तस्करों की चांदी हो जाती है। यह खुलासा उन दो तस्करों ने किया है, जो सहायक वन संरक्षक, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की गिरफ्त में आए है। धनवान् बनने का दावा मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के पुलिस के चंगुल में भी दो कछुआ तस्कर सपड़ में आए हैं। इनमें से एक रविन्द्र अठराहे हैं, जो खैरलांजी तहसील का भेंडारा गांव का निवासी हैं तथा दूसरा राजेश अठराहे हैं, जो वारासिवनी तहसील का थानेगांव निवासी हैं। . ये दोनों साढू हैं और सालों से इस क्रूर धंधे में लिप्त हैं। इन्होंने पुलिस को जो बयान दिया है, उसके अनुसार, कछुओं की भारी मांग महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, पश्चिमी बंगाल राज्य एवं मप्र के छिंदवाड़ा, सिवनी व मंडला जिलों में रहती है। इन तस्करों का यह भी कहना है कि तांत्रिक 18 से 20 नख (नाखून) वाले कछुओं के माध्यम से ‘रुपयों की बरसात’ करने का दावा करते हैं। धोखे की टट्टी नोट बरसाने के इस खेल में तमाम भ्रांतियां हैं। पुलिस के हाथ आए तस्करों का कहना है कि तांत्रिकों के द्वारा यह दावा किया जाता है कि तंत्र-मंत्र करते हुए कछुए के पेट में जितना नोट रखा जाएगा, उतनी राशि के नोटों की वर्षा होगी। लिहाजा, लोग हजार-दो हजार; सौ-पांच सौ का नोट ले कर तांत्रिक के पास जाते हैं, जो किसी सुनसान स्थान पर ऐसा चमत्कारिक खेल दिखाता रहता है। तस्करों का यह भी कहना है कि तांत्रिक खेल के शुरूआत में ही नियम बता देता है कि यदि नोटों की बरसात नहीं हुई, तो समझा जाएगा कि आपका मन पवित्र नहीं है। आप मायामोह के चंगुल में फंसे हुए हैं; इसलिए रखा गया नोट तांत्रिक का हो जाएगा। अगर रुपयों की झड़ी लग गई, तो आप देखते-देखते लखपति-करोड़पति बन जाएंगे। लोग धनवान् बनने के लालच मे तांत्रिकों के मोहपाश में फंस कर रहा-सहा धन भी गंवा देते हैं। झूठे हैं दावे बरसते नोटों के दावाकर्ता तांत्रिकों में बंगाल के अनेक युवा हैं, जो देशभर के आदिवासी इलाकों में फैलकर पहले तो दुष्प्रचार करते हैं, अफवाह उड़ाते हैं, फिर कइयों को चंगुल में फांस कर छू मंतर हो जाते हैं। जबकि आज तक किसी ने कछुए के पेट, पीठ, हाथपैर या किसी अंग से नोटों को झरते हुए नहीं देखा है। दावा खारिज होने पर ज्यादातर तांत्रिक यह कह कर कन्नी काट लेते हैं कि कछुआ पर्याप्त वजनी नहीं था या फिर वे कछुए के नख में ही नुक्स निकालने लगते हैं। कछुए का मूल्य वजन के मुताबिक तस्करों ने खुलासा किया है कि पिछले साल जिन कछुओं को तांत्रिकों को बेचा गया था, उन्होंने दावा किया है कि उन कछुओं से करोड़ों रुपयों की बरसात (झड़ती) करवा चुके हैं वे।. उन्होंने बताया कि इस अनुष्ठान में कछुए का वजन मायने रखता है। कछुआ 8 नख का हो, तो वजन साढ़े 4 किलोग्राम; 12 नख का हो, तो वजन ढाई किलोग्राम और 20 नख के कछुए का वजन 250 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। सपड़ाए तस्करों ने यह भी खुलासा किया है कि कम वजन के कछुओं को लोग तंत्र-मंत्र के लिए घरों में भी पालते हैं। सवाल यही है कि ऐसे अंधविश्वासी धारणाओं से हमारा समाज और हम कब तलक मुक्त होंगे, जो हमारी विवेक-बुद्धि को हर कर हमारी धन-संपदा पर डाका डाल रहा है। --00-- अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।