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मुफ्त की रेवड़ी- रेवड़ी बाट कर वोट बटोरने वालों

virendra kumar dewangan 29 Jul 2023 आलेख राजनितिक political 8211 0 Hindi :: हिंदी

मुफ्त की रेवड़ी का क्या है समाधान

आखिर इस महामारी का समाधान क्या है? केंद्र सरकार ने अपने बजट में चालू वित्त वर्ष में राज्यों को पूजीगत कार्याें पर खर्च करने के लिए 80 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जो राज्यों को ब्याजमुक्त देय होगा।

6 अप्रैल 2022 को वित्त विभाग ने सभी राज्य सरकारों को पत्र भेजा है,‘‘राज्यों से आग्रह है कि वे कोष की मंजूरी और उसे प्राप्त करने के लिए 2022-23 में किए जाने वाले प्रस्तावित पूंजीगत कार्यों का ब्योरा वित्त विभाग को दें।’’

पूंजीगत व्यय वे होते हैं, जो शासकीय इमारतों, परिसंपत्तियों, प्रौद्योगिकियों, औद्योगिक संयंत्रों, उपकरणों और भौतिक संसाधनों को संग्रहित करने, अपग्रेड करने और स्थायित्व देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

इसमें उद्योग-धंघों की स्थापना, बंदरगाह, स्टेडियम, हवाई-अड्डे, अस्पताल, स्कूल-कालेज, पुल, सड़क, खेल मैदान आदि के विनिर्माण से जुड़े खर्चे आते हैं।

इससे राज्यों में जहां प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, वहीं भारी मात्रा में रोजगार का सृजन होगा और ढांचागत संरचनाओं का वृहद पैमाने पर निर्माण।

दूसरा तरीका यह कि लोगों को खैरात में चीजें देने के बजाए उन्हें रुपये की किस्तबंदी कर बिना ब्याज का सामान और जरूरत के मुताबिक धनराशि मुहैया करवाया जा सकता है।

देश की आर्थिक दशा को पटरी पर लाने का तीसरा तरीका यह कि देश-प्रदेश में संवैधानिक पदों पर विराजमान वे सारे पदधारी, जो ऊंचे-से-ऊंचे पदों पर विराजमान हैं और जो किसी-न-किसी रूप में मुफ्त की सेवाएं और सुविधाएं ले रहे हैं, देश-प्रदेश के समग्र हित में उसका कम-से-कम 50 फीसद त्याग करें।

ये मुफ्त की सेवाएं हैं, असीमित बिजली, चौबिसों घंटे पानी, आलीशान आवास, सीमाहीन टेलीफोन, फ्री हवाई व रेलयात्रा, कई-कई मोटर-गाड़ियां और उन पर पेट्रोल-डीजल व रखरखाव पर खर्च और अनेक ड्राइवर व नौकर-चाकर।

यही नहीं, केंद्र, राज्य, संभाग व जिलों में विभिन्न पदों पर पदस्थ आलाअफसर व न्यायपालिका के लोग भी ऐसे गैरजरूरी व्यय को करने से बाज नहीं आते, जिससे राजकीय खजाने को भारी चूना लगता है।

दरअसल, ऐसे व्ययों से किसी पदधारी का जेब रीता नहीं होता, इसीलिए वे माले मुफ्त दिले बेरहम की नाई अपव्यय करते रहते हैं।

सरकारों से आग्रह

असल में, सरकारी कोष को खोखला करने वाले ऐसे अनावश्यक खर्चों को रोकने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को कठोरतम कानून बनाने की शख्त जरूरत है, तभी हालात में सुधार संभव है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे जनता को समर्पित करते हुए युवाओं को चेताया था कि वे रेवड़ी बाट कर वोट बटोरने वालों से सावधान रहें।

उन्होंने यह भी कहा था, ‘‘रेवड़ी संस्कृति वाले कभी एक्सप्रेसवे, डिफेंस कारिडोर, एयरपोर्ट नहीं बनाएंगे। वे तो रेवड़ी में जनता को फंसाकर समझेंगे कि जनता को खरीद लिए हैं; फिर वे खुद के खजाने भरने लगेंगे।’’

चूंकि प्रधानमंत्री ने एक ऐसे देश हितैषी मामले को छेड़ दिया है, जो अत्यंत संवेदनशील है और समूचे देश की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है; इसीलिए उनको आगे आकर इस पर सुधारात्मक उपाय स्वयं करने चाहिए।

केवल भाषण दे देने से व पर उपदेश कुशल बहुतेरे करने से, लेकिन अपनी ही पार्टी के शासकों के द्वारा अमल न करने-करवाने से हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ सकता हैं। 

कारण कि यह एक ऐसा होड़ा-होड़ी वाला रबड़ीयुक्त रेवड़ी है, जो आजादी के बाद से न केवल सत्ता पर काबिज करवाती रही है, बल्कि सत्ता के मजे भी दिलाती रही है; इसीलिए कोई दल का नेता इसे छोड़ना नहीं चाहता।

रेवड़ीखोरी की पराकाष्ठा

	देश में ऐसे 7 राज्य हैं, जो अपने मुख्यमंत्री, अन्य मंत्रियों व विधायकों को सरकारी खजाने से न केवल वेतन और भारी-भरकम भत्ता देते हैं, अपितु उनके वेतन पर लगनेवाले आयकर का चुकारा भी करदाताओं के पैसों से करते हैं।

	कई राज्य सरकारों ने तो बड़ी चतुराई से विधायकों का मूल वेतन इतना कम रखा है कि आयकर ही न देना पड़े, पर भत्तों के रूप में मोटी राशि का भुगतान कर खजाने को चूना लगाते रहें।

	मजे की बात यह भी कि इन राज्यों में सत्ताधारी पार्टियां जब विपक्ष में होती हैं, तब वे इस कुव्यवस्था की निंदा करती हैं. पर, जब सत्ता में पहुंच जाती है, तब इसके समर्थन में उतर आती हैं।

	ये बड़े राज्य हैं. पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, मप्र और छग। 

हालांकि इन की संख्या पहले 9 थी, लेकिन 2019 में उप्र और 2022 में हिमाचल प्रदेश ने इस बदइंतजामी को समाप्त कर एक मिसाल पेश किया है।

संवैधानिक पदों पर विराजमान नेताओं की आय व्यक्तिगत होती है, इसीलिए अपनी खुद की आय पर नेताओं को आयकर स्वयं अदा करना चाहिए।

नेताओं की आय पर लगनेवाले आयकर को शासकीय कोष से अदा करना जनता के साथ जहां धोखा है, वहीं रेवड़ीखोरी की पराकाष्ठा है।

राजनीतिक दलों के मुफ्ती वादे

हालिया संपन्न पंजाब विधानसभा चुनाव में आप पार्टी ने 18 साल से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को 1 हजार रुपया महीना तथा हर परिवार को 300 यूनिट बिजली फ्री; शिरोमणि अकाली दल ने हर महिला को 2 हजार रुपया महीना और कांग्रेस ने हर महिला को 2 हजार रुपया महीना देने का वादा किया था।

इसी तरह उप्र में कांग्रेस ने 12वीं की छात्राओं को स्मार्टफोन और भाजपा ने 2 करोड़ टैबलेट देने का भरोसा दिलाया था।

यही नहीं, गुजरात में इस साल के अंत तक संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में आप ने बेरोजगारों को 3 हजार रुपया महीना भत्ता तथा हर परिवार को 300 यूनिट फ्री बिजली देने का आश्वासन दे दिया था।
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