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सामाजिक छल - F-58

चंद्र प्रकाश 12 Nov 2023 कविताएँ समाजिक 8212 0 Hindi :: हिंदी

सामाजिक छल - F-58
हूँ धन से गरीब, नहीं अन्न से गरीब, ना दिल से गरीब,
                 गरीबी मेरी का यूं मजाक ना कर II 
हूँ हक हलाल का मालिक, दिल से जिया, खरीद घृत रज पिया, 
                 कमाई मेरी का तू हिसाब ना कर II 
हूँ जिंदा ईमान से, डरता अभिमान से, चाहत जीना सम्मान से,
	          दहेज- दान का मुझ पर फ़र्ज का,  ईनाम ना धर II
                                            ना लिया है ना दिया है, कर्ज किसी को,
                                       मिला जीवन नर, करना हिसाब किताब बराबर,
                                               दान डलवाकर ओर लिखवाकर,
 					                   बही का मुझे, कर्जदार ना कर II
                                    मजबूरी खूनी रिश्तों की, नहीं जरूरत फरिश्तों की, 
                            जीना निति हिसाब से, बेहिसाब मुझसे, सवाल ना कर II

कौन- कौन प्रिय हमारे,  मालूम तुझे भी, मालूम मुझे भी !
अपने छोड़कर, बेगाने जोड़कर, 
स्वपन मेरा तोड़कर, मुझे निराश ना कर II 
मुदत्त हुए मिले, कई बहनों से, गुजरने दे लम्हे साथ अपनों के,
करके दूर अपनों से मुझे,  घर मेरा सुनसान ना कर II
तुम मेरे अपने होकर भी रूठ जाते हो?
गुनाह चार-२ मौत भुला, खुशीयां गले लगाते हो,
दुहाई रीत समाज गरीबी की, अपनी ख़ुशी हर मनाते हो, 
केवल जनाजे पर चाहते उनको, ख़बर शुभ को तरसाते हो, 
जरा देने दे शुभ घड़ी खबर, मुझे मुबारक से दूर ना कर II

                              
जन रक्षक होते, मालूम मुझे, झूठी शान, सामाजिक बंधन,
शोषण होते ग्रामीण बेचारे, चले शहर, छोड़ समाज बंधन,  
ठहरा मैं भी ग्राम यहाँ, रहने दे ग्रामीण मुझे, बांधकर मुझे, शहरी ना कर, 
देखते नयन दीन बेचारे, आये कोई रीत सुधारे, 
अरमान मेरा नई लीक विचारे, कुछ करने दे, नया मुझे, विवाद ना कर   
सामाजिक मैं, समाज मे रहता, समाज से मुझे दूर ना कर II 
कदर तुम्हारी, रही शान हमारी, तुम भी आभारी हम भी आभारी,
हिस्सा मैं खानदान तुम्हारा, संभालकर मुझे, हक़ से यूं हलाल ना कर II  
                                              चंद्र प्रकाश @ सेठी 11.11.23

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