उसे दफ्तर के गेट पर पड़ा हुआ एक बटुआ मिला, उसने खोलकर देखा तो उसके अंदर दो – दो हज़ार रुपए के दस नोट पड़े थे। उसने चुपचाप कुछ देर इंतजार किया। जब उसका कोई मालिक वहाँ पर ना आया तो उसने वह बटुआ ऑफिस के अंदर जाकर, मैनेजर के पास जमा करवा दिया। अगले दिन प्रातः जब उसने अख़बार देखा तो, वह आवाक रह गया।
– कि अख़बार मे छपे एक चित्र मे वह मैनेजर एक आदमी को बटुआ लौटा रहा था। उस चित्र के नीचे लिखा था – ईमानदार मैनेजर ने बीस हज़ार रुपए लौटाए।
सुनील कुमार शर्मा