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प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के लिए तैयारी

virendra kumar dewangan 16 Jul 2023 आलेख अन्य Motivational 7384 0 Hindi :: हिंदी

प्रशासनिक सेवाओं में पदार्पण के इच्छुक युवाओं को यह प्रश्न बारंबार सालता रहता है कि स्नातक के बाद प्रतियोगिता परीक्षा में कामयाबी का वरण करने के लिए उसे एक और इम्तहान से गुजरना पड़ेगा। अर्थात् कोचिंग करना पड़ेगा। सामान्य ज्ञान में विशेषज्ञता हासिल करनी होगी। प्रतियोगिता पत्रिकाएं या किताबें पढ़कर इंटरव्यू देना होगा। तभी कोई अच्छी-भली शासकीय नौकरी नसीब हो सकेगी।

	यह परम सत्य है कि किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के लिए उसकी संपूर्ण परीक्षा-प्रणाली की सम्यक जानकारी होनी चाहिए। उसका पाठ्यक्रम स्मृतिपटल पर सोते-बैठते, उठते-जागते व चलते-फिरते किसी चलचित्र की नाई चलते रहना चाहिए।
 
आशय यह भी कि पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि होनी चाहिए, तभी हम-आप पाठ्यक्रम की जानकारी का लाभ उठाकर निरंतर तैयारी में जुटे रह सकते हैं। यह तथ्य गांठ बांधकर चलना चाहिए कि बगैर रुचि के किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होना तो दूर; उसके पहले पड़ाव को भी पार करना मुश्किल काम हुआ करता है।

	सफलतम प्रतियोगियों का अभिमत है कि प्रतियोगिता परीक्षा पास करने के लिए रोजाना 5 से 6 घंटा पढ़ना और लिख-लिख कर अपने पढ़े हुए को जांचना जरूरी है। वह भी बेनागा और बिना किसी रुकावट के। 

इसमें यह नहीं हो सकता कि सप्ताह के किसी एक दिन, पढ़-लिख लिए और बाकी दिनों में किताब/पत्र-पत्रिकाएं उलट-पलट कर नहीं देखे, तो हम-आप, अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मार लेंगे और पहले के पढ़े-पढ़ाए पर पानी फेर देंगे।

	किसी प्रतियोगिता परीक्षा में चयनित होने के लिए औसतन 3 वर्ष का समय लगता है। हालांकि इसके कई अपवाद भी हैं, लेकिन आम परीक्षार्थियों को इतना समय लगना लाजिमी है। लिहाजा, तीन वर्ष का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए; धैर्य धारण करना चाहिए और पूरे मनोयोग से तैयारी करने में जुट जाना चाहिए। 

प्रतियोगी इम्तहानों में कामयाबी के लिए प्रतियोगी की याददाश्त भी तेज होनी चाहिए। प्रतियोगी जो पढ़े; स्मृतिपटल पर अंकित रहे, तभी वो अध्ययन का फायदा उठा पाएंगे और पढ़े हुए को परीक्षा में उतार सकेंगे। इसके लिए उसे वाकिंग, जांगिंग, खेलकूद, आसन, प्राणायाम से मानसिक व शारीरिक रूप से सेहतमंद रहना पड़ेगा।
 
परीक्षार्थियों के लिए यह भी जरूरी है कि स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के सम्यक समाधान पर अन्यों के साथ विचार-विमर्ष करने की क्षमता विकसित करते रहना चाहिए।
 
	अंतिम सत्य यह भी कि हम-आप चाहे, जिस किसी भाषा के अभ्यर्थी हो, उस भाषा की अच्छी पकड़ होनी चाहिए। अर्थात निजभाषा परिमार्जित, सुस्पष्ट और त्रुटिरहित रहनी चाहिए।
 
कारण कि अपना विचार, उत्तर-पुस्तिका के रूप में चयनित भाषा के माध्यम से ही परीक्षक तक पहुंचाया जाता है। इसी से परीक्षक अंदाजा लगा लेता है कि परीक्षार्थी को विषयों और मुद्दों का कितना ज्ञान है और भाषा पर कितनी पकड़ है?
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अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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