Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक सावन 20827 0 Hindi :: हिंदी
ली प्यासी धरती ने अंगड़ाई। बरसीले बादल ने दी रूनुमाई। मिली ताल- तलैया को तरुणाई। कोयल, मोर, पपीहा वाणी, समां- छटा सरसाई। नदी, झील ,झरना, जल- प्लावन है। अरे, यही तो सावन है। चांद की धरती पर अठखेली। बयार संग बादल की रंगरेली। झील तट पर पक्षियों की रसकेलि। आम डाल, झूला झूल, बतलाती सखी सहेली। भीग लहरिया टपक- टपक रंग, चेहरे पर आप्लावन है। अरे, यही तो सावन है। धरती का तन मन हरा। आवारा बादल, कब आया, कब झरा। तन के साथ, मन फिसलने का ख़तरा। सावन का रंग, सब में उतरा। धानी ओढ़नी, धानी ही बिछावन है। अरे, यही तो सावन है। लिपट कमसिन बेल, शरमाई देख परछाईं। बादल से झांकने की, चतुर चंदा की चतुराई। जग उठा बैरी विरह, बहकी बूंद बदन पर आई। स्वर्ग लोक के सकल देवता, दे सावन सैर दुहाई। तीज राखी, सावन में पावन है। अरे, यही तो सावन है। यही तो सावन है।