Divya Kumari 19 Mar 2024 कविताएँ समाजिक 1907 0 Hindi :: हिंदी
हे प्रभु वर्षो से रखें प्रश्न लेकर तेरे पास आई हुँ जग से हार चुकी अब बस तेरा आस लगाई हुँ। तेरी बनाई इस दुनिया में यह कैसा दिन आ गया नारी नहीं सुरक्षित हैं इतनी बुराई छा गया बेटों से इतना प्यार बेटी को गर्व मे मार दिया अपनी प्यास बुझाने को 35 टुकरो में काट दिया उन टुकरो को लेजाने वाला यमराज भी धराया था ब्रह्मा भी जिसकी काया देख बार बार पछताया था तेरी दुनिया की बात तुझे बताने आई हू जग से हार चुकी तेरे पास न्याय की अर्ज़ी लाई हू तुम वही हो ना जो सीता के उस अपहरणकारी को प्रकांड पंडित उस अहंकारी को वनारी सेना लेकर मारे थे द्युत सभा मे द्रौपदी के चीर को हाथ लगाने वाले को महायुध मे मृत्यु के घाट उतारे थे भ्रूण हत्या करने वाले अशवस्थामा दर दर आज भटकते हैं। आज हज़ारो अशवस्थामा खुशी से ही तो जीवन यापन करते हैं तुम अपने ही इस दुनिया से अंजान बने क्यु बैठें हो तुम तो बड़े दयालु हो फिर क्यु तुम ऐसे करते हो  फिर प्रभु मुस्कुरा के बोल उठे सुनते ही उन बातों को अंतर मन भी डोल उठे कौन कहता हैं की तुम अवला नारी हो विनास्कारी हो तुम्ही सृजन कारी हो। तुम्ही रघुवर की सीता हों अनंत ज्ञान तुम गीता हो आदि हो अनादि हो महादेव की शक्ति माँ काली हों। माँ दुर्गा का अवतार तुम्ही जीवन का आधार तुम्ही सृष्टि का संचार तुम्ही मेरी बंशी की मधुर तान तुंही वक्त आ गया अपनी शक्ति जानने की वस्विक मूल्य पहचानने की नारी नारी की ढाल बनो मिलकर हर बुराई का नाश करो पर सर्वप्रथम सोये हुए इस दुनिया को तुम फिर से जागना सोये हुए इस दुनिया को तुम फिर से जागना कुपथ पे चलने वालों को एक नया राह दिखाना एक नया राह दिखाना एक नया राह दिखाना