DINESH KUMAR KEER 10 May 2023 कविताएँ अन्य 4667 0 Hindi :: हिंदी
सबको आती है नज़र रोशनी मेरे अंदर, कितनी है, पूछे कोई तन्हाई मेरे अंदर मेरी आवाज़ में है शामिल इक सन्नाटा, सदियों से चीखती है ख़ामोशी मेरे अंदर भीगने से भला कैसे बचाऊं ख़ुद को बहती है ग़म की एक नदी मेरे अंदर क़त्ल भी करता हूं तो माफ़ी के साथ, थोड़ी है पर है अभी सादगी मेरे अंदर ये ग़लतफ़हमी है सबको कि मैं ख़ुश रहता हूं, ग़ौर से देखो, कहां है ख़ुशी मेरे अंदर ? जिस्म ख़ुद देता है अब कन्धा सांसों को, जब दम तोड़ती है ज़िंदगी मेरे अंदर.....