Preksha Tripathi 22 Jun 2023 कहानियाँ समाजिक 9045 1 5 Hindi :: हिंदी
आज मैंने चाय बनाते हुए यह अनुभव किया कि, चाय बनाने से ज्यादा कठिन होता है चाय को छानना। मैंने उतने ही प्रेम से चाय की पत्ती पात्र में डाली जितने प्रेम से दूध। जितना मेरा प्रेम इन दोनों को मिला शायद! उससे ज्यादा इन्होंने एक दूसरे को दिया... इतना कि दूध चाय के रंग में रंग गया। इन दोनों के बीच मित्रता शुरु ही हुई थी कि एक ऐसा भी क्षण आ गया जब मुझे चाय की पत्ती को दूध से अलग करना था। बहुत मुश्किल था मेरे लिए यह करना क्योंकि मेरा स्नेह बराबर था दोनों के प्रति लेकिन परिस्थिति ऐसी कि मुझे एक को प्याले में सजा कर बड़ी खूबसूरती के साथ लोगों के सामने पेश करना था, और एक को बाग की मिट्टी में फेकना था। चाय की पत्ती की मित्रता इतनी सच्ची कि उसने अपना सब कुछ दूध पर न्यौछावर कर दिया लेकिन उसका दोष बस इतना कि वह स्वयम् दूध में न घुल पायी.... फलस्वरूप..... चाय की पत्ती को उपेक्षित भाव का सामना करना पड़ा और वह अपने निश्च्छल् प्रेम से प्रेरित हो अपना सर्वस्व दे कर मिट्टी में मिल गयी । जैसा आज चाय की पत्ती के साथ होते हुए मैंने देखा - मुझे ये लगने लगा कि, आज का समाज बिल्कुल यही करता है आपसे जो जरुरी होगा वो लेता रहेगा और आपकी किंचित् मात्र की गलती आपको जन मानस कृत अव्हेलना का सामना करवा देगी। प्रेक्षा त्रिपाठी ✍️ (प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश)
9 months ago