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प्रतिशौध या प्रायश्चित

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक जितेन्द्र शर्मा की कहानी। रोचक कहानियां। आत्माओं की कहानी। भूत प्रेत के किस्से।सोलर कहानी। अपराधिक कहानी। थ्रिलर कहानी। थ्रिलर उपन्यास। 87831 0 Hindi :: हिंदी

कहानी- "प्रतिशोध या प्रायश्चित?"
खण्ड- एक
कहानीकार- जितेन्द्र शर्मा
दिनांक- 10/01/2023

निवेदन- सम्मानित पाठकों! यह कहानी कुछ अधिक लम्बी है। इसे लघु उपन्यास कहना अधिक उचित रहेगा। अतः एक बार में प्रकाशित करना न सम्भव है न न्यायोचित। अतः मैं इसे अनेक खण्ड में प्रकाशित करने जा रहा हूं। आशा है आप मेरी इच्छा को समझकर लगातार प्रकाशित होने वाले इसके सभी खण्डों को पढ़ेंगे और अपनी अमूल्य राय से अवगत करायेंगे।
आपका जितेन्द्र शर्मा
परीक्षितगढ़ मेरठ
फोन न०- 9719663440

कहानी- खण्ड एक

विपिन चंद्र जाने-माने उपन्यासकार थे। पुरानी दिल्ली की एक साफ स्वच्छ कॉलोनी में उनका एक छोटा किन्तु दो मंजिला मकान था, कॉलोनी में उनके जैसे ही मध्यम वर्ग के लोग निवास करते थे, जिनके बीच बिपिन चंद्र का बड़ा सम्मान था। मकान के भूतल पर उन्होंने एक बैठक बनवाई हुई थी जिसमें वह आगंतुकों का स्वागत करने के साथ-साथ अपना लेखन कार्य भी करते थे। रात्रि में वह देर रात तक लेखन कार्य करते और प्राय उस कक्ष में ही एक और लगे हुए तख्त पर सो जाते। एक प्रकार से उनकी यह बैठक एक बहुउद्देशीय कक्ष था। परिवार के नाम पर उनकी पत्नी, बेटा व पुत्रवधु तथा एक पोत्र व एक पोत्री। बिपिन चन्द्र की एक पुत्री भी थी जिसका वह दो वर्ष पूर्व विवाह कर चुके थे और वह अपनी ससुराल में सुखी थी। बेटा दिल्ली में ही सरकारी अधिकारी था और अपने माता- पिता के ही साथ रहता था। एक तरह से विपिन चन्द्र का परिवार सुखी था।
उनके उपन्यास पाठकों के बीच अपनी पहचान बना चुके थे। पाठक उनके अगले उपन्यास के छपने की प्रतीक्षा करते, जैसे ही उनका नया उपन्यास बाजार में आता, हाथों हाथ बिक जाता। 

***
जनवरी के पूर्वार्ध की एक सर्द रात थी। रात के दस बजे थे। विपिन चंद्र अभी भी अपने लेखन कार्य में व्यस्त थे। वह अपना एक नया उपन्यास लिख रहे थे जिसका केवल क्लाइमैक्स ही शेष था। उन्होने आज रात उपन्यास को पूरा करके ही सोने का विचार बनाया था। उनके इस उपन्यास की पाठक बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक उनके गेट पर ठक ठक की आवाज हुई, जैसे कोई दरवाजा खोलने की प्रार्थना कर रहा हो। उनका ध्यान भंग हुआ। दिल्ली में रात्रि दस बजे किसी परिचित का आना कोई  असामान्य बात तो नहीं थी किंतु इतनी ठंडी रात में कोई परिचित या रिश्तेदार आया होगा, यह संभव नहीं लगता था। दरवाजे पर पुनः ठक ठक की आवाज हुई  और विपिन चंद्र ने उठकर दरवाजा खोला। दरवाजे पर एक सुंदर युवती को देखकर भोचक रह गए। युवती सम्भवतः पच्चीस वर्ष की  रही होगी। पैरों में हाई हील के जूते, जींस और उसके ऊपर बंद गले का एक लंबा ऊनी ओवरकोट। सर पर काले रंग का स्कार्फ जो माथे तक सिर को ढके हुए था। युवती अप्रतिम सौंदर्य की स्वामिनी लगती थी। द्वार के सामने दीवार पर लगे हुए बल्ब की मंद रोशनी में भी उसका सुन्दर उदास चेहरा पूर्णिमा के चांद की तरह चमक रहा था।
"कहिए?आप कोन हैं? और किससे मिलना चाहती हैं?" विपिन चंद्र ने पूछा। उन्होने सोचा कि सम्भवतः युवती उनके बेटे या पुत्रवधु की परिचित हो और उनसे ही मिलने आई हो।
"आप विपिन चंद्र जी है ना? प्रख्यात उपन्यासकार?" युवती ने प्रश्न के बदले प्रश्न किया।
"जी हां! मैं ही विपिन चंद्र हूं!"
"तब मुझे आपसे मिलना है!"
"कहिए! में क्या आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?"
"बाहर बहुत ठंड है! यदि आप आज्ञा दें तो मैं अंदर आ जाऊं" युवती ने हल्की हंसी के साथ अनुमति मांगी।
"हां! हां! आईये!" विपिन चंद्र दरवाजे से एक तरफ हटते हुए बोले। वे युवती को इस समय वहां पाकर सामान्य औपचारिकता भी भूल गये थे।
युवती अंदर आकर आगंतुकों के लिए रखी गई कुर्सियों में से एक पर बैठ गई। 
"कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?" विपिन चंद्र ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।
"मैं आपसे जिस काम की आशा लेकर आई हूं वह काम बस आप ही कर सकते हैं।" युवती ने अनुनय भरे शब्दों में कहा।
"बताइए! आप क्या चाहती हैं? यदि मेरे बस में हुआ तो अवश्य करूंगा।" विपिन चंद्र ने सामान्य स्वर में कहा।
युवती कुछ कहती उससे पूर्व ही विपिन चंद्र की पत्नी माधवी ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा-"आप किस से बात कर रहे थे जी?" उसने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई तथा बोली- "यहां तो आपके अलावा और कोई नहीं! फिर आप बात किससे कर रहे थे?"
विपिन चंद्र पत्नी की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। वह अपनी पत्नी से युवती के बारे में कुछ कहना ही चाहते थे कि सामने बैठी हुई युवती ने गर्दन हिलाई जैसे कह रही हो कि वह अपनी पत्नी को यह ना बताएं कि सामने कोई युवती बैठी है। 
विपिन चंद्र चाह कर भी कुछ ना कह सके। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा -"वह यहां कैसे?"
"मैं तो सोने ही वाली थी कि आपकी आवाज सुनी। सोचा आपसे कोई मिलने आया है। कहीं चाय के लिये तो मेरी आवश्यकता ना पड़ जाय? यही सोच कर आ गई। किंतु यहां देखा तो कोई नहीं। फिर आप बात किससे कर रहे थे?" माधवी ने आश्चर्य से कहा।

"कुछ नहीं! तुम्हे कोई धोखा हुआ है। जाओ मुझे अभी बहुत सारा काम करना है। तुम जाकर आराम करो।" विपिन चंद्र ने कुछ असंयत स्वर में कहा। वह अपनी पत्नी के सरल स्वभाव व सेवा भावना का बहुत सम्मान करते थे। चाहते थे कि उनकी पत्नी को अनावश्यक चिन्ता न हो। माधवी कमरे से वापस चली गई।
विपिन चंद्र अभी भी अचंभित थे। उनके समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी पत्नी ने युवती को क्यों नहीं देखा था। उनकी यह हालत देख युवती बोली-"मैं जानती हूं कि आप यह सोच रहे हैं कि आपकी पत्नी ने मुझे क्यों नहीं देखा? यही बात है ना?" युवती ने कुछ लज्जित स्वर में कहा। उसकी आवाज इस जनवरी की सर्द रात की तरह ही सर्द थी। 
अब विपिन चंद्र थोड़ा भयभीत हो चले थे। उन्होंने अनेक बार भूत प्रेतों और आत्माओं किस्से कहानिया सुनी थी। युवती का व्यवहार भी उन कहानियों में वर्णित आत्मा के चरित्र जैसा ही था। किंतु ऐसी घटना उनके साथ भी घट जाएगी इस पर उन्हें विश्वास न था क्योंकि वह भूत प्रेत और आत्माओं  के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते थे।

"हां! मैं यह जानना चाहता हूं कि मेरी पत्नी तुम्हें क्यों ना देख सकी?" विपिन चंद्र ने अपना सारा साहस  एकत्र करके पूछा।
"क्योंकि मैं एक आत्मा हूं! और आत्माऐं सबको दिखाई नहीं देती।" युवती ने धीमे किन्तु ठण्डे स्वर में कहा।
युवती की बात सुनकर विपिन चंद्र का सारा साहस जाता रहा। उनका चेहरा भय से पीला पड़ गया। वह मौन रहकर एकटक युवती को देख रहे थे।
"छमा करिये! मैं आपको भयभीत करना नहीं चाहती हूं और न ही मेरा उद्देश्य आपको हानि पहुंचाना है।" वह कुर्सी से उठते हुए बोली- "अब सम्भवतः आपसे ठीक प्रकार बात न हो पायेगी! मैं चलती हूं कल फिर आऊंगी।" 
बहुत समय तक विपिन चंद्र की हालत पूर्ववत बनी रही। वह समझ नहीं पा रहे थे कि कोई आत्मा भी उनसे सामने आकर इस प्रकार बात कर सकती है। किंतु यह अभी अभी उनके साथ घटा था। अपना पूरा साहस बटोरकर वह खड़े हुए और बैठक का द्वार बंद कर तख्त पर लेट गए। अब लेखन कार्य करना उनके बस में न था।

***
क्रमस:

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