लघुकथाःः
चिरंजीवःः
अखबार में चिरंजीवी का रोलनंबर देखकर प्रमोद चहका,‘‘अजी, सुन रही हो। हमारा बेटा मेरिट में आया है। ये देखो, उसका नाम!’’
अंगुलियों से नाम दिखाने व पत्नी द्वारा देख लेने पर वह गर्व से बोला,‘‘मैं बोलता था न कि लड़का मेघावी है। वह जरूर कमाल करेगा।…पर तुम मानती नहीं थी।’’
कहती थी, ‘‘ये पढ़ता-लिखता नहीं है। कोचिंग में एडमिशन करवाने के बावजूद उसमें जाता नहीं है और अपने सरीखे दोस्तों के साथ खेलकूद में लगा रहता है। आखिर बेटा है किसका? बाप शेर, तो बेटा सवासेर निकलेगा ही’’
बात आई-गई हो गई। उसे मेडिकल में दाखिला दिलाकर माता-पिता निश्ंिचत हो गए कि बेटा अब डाक्टर बनकर रहेगा। उसे डाक्टर बनने से कोई नहीं रोक सकता।
एक दिन पुलिस उसके घर पहुंच गई और पूछताछ करने लगी। उसे कालेज से फोन द्वारा पता चल गया था कि बेटा, रैगिंग के चक्कर में फंस गया है। वह सीनियरों के साथ मिलकर जिस जूनियर की रैगिंग ले रहा था, वह खुदकुशी कर बैठा है। यह सुनकर प्रमोद के होश फाख्ता हो गए।
उसे अपने बेटे की चिंता इसलिए सताने लगी कि वह रैगिंग ले कैसे सकता है? वह तो प्रथम सेमेस्टर में है और जूनियर छात्र में शुमार है। क्या जूनियर छात्र भी रैगिंग ले सकते हैं? उसके दिल-दिमाग में इसी तरह के कई प्रश्न आ-जा रहे थे?
हो न हो; उसे किसी ने फंसाया है? वह इसी चिंता में फौरन मेडिकल कालेज, रायपुर के लिए निकल पड़ा। मेडिकल कालेज पहुंचने पर प्रमोद को ज्ञात हुआ कि उसका बेटा चिरंजीवी जिस लड़की को चोरी छिपे देखा करता था, उसी लड़की के पीछे एक और जूनियर लड़का भी पड़ा हुआ था।
एक दिन इसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी और नोंकझोंक हो गई। चिरंजीवी इस लड़ाई को दिल से लगा बैठा और अपने जूनियर साथी को सबक सिखाने के लिए तरकीबें निकालने लगा। वह बात-बात में गुस्सा करने और चिढ़चिढ़ाने भी लग गया था।
तभी चिरंजीवी की एक सीनियर साथी से दोस्ती हो गई, जो इसी इलाके का रहनेवाला था। चिरंजीवी ने उसे अपनी सारी व्यथा सुनाई। उस सीनियर ने अन्य साथियों की मदद से उस प्रेमी जूनियर की यूं फजीहत कर दिया कि वह शर्म से पानी-पानी हो गया। चित्कार उठा, रो पड़ा। दूसरे दिन उसकी लाश हास्टल के कमरे में पंखे पर लटकती हुई मिली।
इसमें हुआ यह कि चिरंजीवी के अनुरोध पर सीनियर उसे बहला-फुसला कर एक अंधेरी गली में उठा ले गए। उससे छीना-झपटी व मारपीट किए। उसके सारे कपड़े फाड़कर उसको बदरंग कर हास्टल कैंपस में दौड़ा दिए।
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