Preksha Tripathi 23 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7468 1 5 Hindi :: हिंदी
क्यूँ इतने खामोश हो तुम? साँस है बेहोश हो तुम। जी रहे हो जानकर कि और कुछ न हो सकेगा। खिल उठा हूँ अब तो केवल मधुरसों का भोग होगा।। काटते हो उम्र अपनी कंटकों के बीच में। सूख जाते फिर भी खिलते बस एक ही जल सींच में।। प्रेक्षा त्रिपाठी ✍️ प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
8 months ago