लघुकथाःः
एक मां की चिंताःः
रायपुर से जगदलपुर जा रही एक स्लीपर कोच में एक महिला अपने दो बच्चों के साथ यात्रा कर रही थी। वह दो स्लीपर वाली सीट लिए हुए थी, जिसमें उसके कथित बच्चे आराम फरमा रहे थे। एक सिंगल स्लीपर सीट में वह महिला अकेली विराजमान थी।
उसके बच्चे निश्ंिचत सो रहे थे, पर वह महिला अपने बच्चों की रखवाली में रात काट रही थी। जब बस किसी स्टापेज पर रुकती थी; वह आंखें खोल लेती थी। यात्रियों के चढ़ने-उतरने का सूक्ष्म निरीक्षण करती थी। यात्रियों से कहती थी, ‘‘बच्चे हैं, सो रहे हैं; आहिस्ता निकलें।
इस बीच एक मुसाफिर यू-टयूब में गाना चालू कर दिया, तो वह उसे झिड़कते हुए बोली,‘‘यहां सबलोग सो रहे हैं। तुमको गाना-बजाना सूझ रहा है। बंद कर ये बेढंगा गाना-वाना।’’
तेज आवाज में एक महिला के द्वारा झिड़कना, हालांकि उस आदमी को नागवार गुजरा था, पर वह एक अधेड़ महिला की कड़कदार स्वर को अनसुना नहीं कर सका। वह अपना मोबाईल तुरंत बंद कर दिया और सो गया।
जब स्लीपर कोच बस स्टापेजों में रुकती थी, तब ड्राइवर बस के अंदर की लाईट आन कर देता था, ताकि चढ़ने-उतरनेवाले यात्रियों को सहूलियत हो। यात्री आराम से चढ़ें-उतरें। यह तरीका भी उस महिला को खटका।
वह कंडक्टर को डपटती हुई बोली,‘‘बंद करो ये लाइट। इससे मेरे बच्चे डिस्टर्ब होते हैं। जलती लाइट में वे सो नहीं पाते। बंद नहीें करोगे, तो लाइट फोड़ दूंगी।’’
कड़कदार आवाज में दिए गए एक महिला सवारी के आदेश से बेचारा कंडक्टर सिटपिटा गया। सोचा; जिस मार्ग पर दस-दस मिनट में बसें दौड़ती हांे; सवारी की मारामारी हो; उस रास्ते में सवारियों की भावनाओं का ख्याल रखा जाना चाहिए। वह लाइट आफ कर दिया।
बहरहाल, अपनी गति से चलते हुए बस, जब जगदलपुर, कुम्हारपारा में सुबह-सुबह पहुंची, तब यात्रियों ने दांतो तले ऊंगली दबा लिया कि जो महिला, जिन बच्चों के निर्विध्न नींद की खातिर पूरे बस को अपने सिर पर उठा रखी थी, वे कोई 14-16 साल की अल्हड़ किशोरियां थीं।
वाकई, एक मां के लिए उसके बच्चे हर मोड़ पर बच्चे ही होते हैं।
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