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छोटा परिवार भी दुख का आधार-बड़ा परिवार दुख का आधार, छोटा परिवार सुखी परिवार

Meenakshi Tyagi 03 Aug 2023 आलेख समाजिक सभी भारतीय 19739 2 5 Hindi :: हिंदी

लगभग 25- 30 साल पहले की बात है जब सरकार ने नारा दिया था -  बड़ा परिवार दुख का आधार, छोटा परिवार सुखी परिवार। वक्त बीतता गया और सभी बड़े परिवार छोटे हो गए, पर क्या इन छोटे परिवारों में सुख के कुछ क्षण बचे हैं मुझे नहीं लगता । पहले परिवार बड़े होते थे  परिवार बड़े मतलब संयुक्त परिवार होते थे  दादा दादी, ताऊ ताई चाचा चाची और हम सब बच्चे सब एक साथ मिलजुल कर रहते  थे, सबके दिल इतने बड़े होते थे कि एक दूसरे का सुख-दुख बांटते थे, घर में किसी को कुछ हो जाता था तो जैसे कभी कोई कभी कोई देखभाल के लिए खड़ा ही रहता था और अगर कोई खुशी की बात होती थी तो सब एक दूसरे की खुशी में हर्षोल्लास के साथ खुश रहते थे  पैसे कम होते थे पर घर में किसी चीज की कभी भी कमी नहीं होती थी और संयुक्त परिवार में रहकर बच्चों को स्वत: ही समाज के सारे रीति रिवाज निभाने आ जाते थे और अगर बच्चो से कभी भूल से भी अपने बड़ों का अनादर हो जाता था तो उन्हे लगता था कि जैसे पता नही उनसे कितना बड़ा अपराध हो गया है, मगर अब परिवार छोटे होते होते इतने छोटे हो गए हैं कि 3 लोगों के परिवार है, सब कमाने वाले है पर दिल , दिल इतने छोटे हो गए है कि  घर में भी जरा भी सुख नहीं है कोई भी एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं है किसी के पास समय ही नही है, सब एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे पड़े रहते हैं बच्चे मोबाइल में या फिर टीवी में लगे रहते हैं उन्हें मतलब ही नहीं है कि बड़े उन्हें क्या कह रहे हैं, क्या समझा रहे है। समाज के रीति रिवाजों से तो उन्हे कोई लेना देना ही नही है, तो ये छोटे परिवार सुखी हुए या दुखी।
 आने वाली नई पीढ़ियां समाज के लिए क्या छाप छोड़ेंगी कुछ पता नहीं। 
पर 25-30 साल पहले जो स्लोगन दिया गया था " बड़ा परिवार दुख का आधार, छोटा परिवार सुखी परिवार" बिल्कुल गलत साबित हुआ।
सोचिए और बताइए......

Comments & Reviews

संदीप कुमार सिंह
संदीप कुमार सिंह बहुत खूब

7 months ago

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Meenakshi Tyagi
Meenakshi Tyagi धन्यवाद🙏

6 months ago

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