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लालच

Tulasi Seth 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 87172 0 Hindi :: हिंदी

लालच कहतें बुरी बला है,
बला को फिर भी पाले रखा है ,
 किंयुकी इस में  अपना भला है।
औरौं का  चाहे कुछ भी बीगडे 
किसको इसकी परवाह पड़ी है,
अपना जैब बस भर जाए तो, किसको
         किसकी कहां पड़ी है।
 ंंमेहनत की अब जरुरत ही कहां
लालच की जब भीड़ खड़ी है,
कुछ  ही में खुस रहने वाले
और अधिक में जुझ पड़ी है।

इतना भी लालच ठीक नहीं है,
जो है   उसमें खुस रहना होगा ,
खाली हाथ तो आए थे सब  
खाली हाथ ही जाना होगा।




  

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