संदीप कुमार सिंह 14 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8436 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) पुरुष स्त्री सब सौम्य है, रग रग में है प्यार। बरसे सावन झूम के,लाया दिव्य निखार।। बरसे सावन झूम के,पानी में है जोश। भींग भींग कर जन सभी, होते हैं मदहोश।। बरसे सावन झूम के,लगे रंगीन बाग। अपनों से मिलना रहे,मन में अति अनुराग।। बरसे सावन झूम के,भक्ति भाव में लोग। भोले की महिमा अभी,भाँग करे उपयोग।। बरसे सावन झूम के, सभी नदी जलमग्न। कलकल चंचल जल दिखे,बांध हुआ है भग्न।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....