Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 68647 0 Hindi :: हिंदी
कविता का शीर्षक- गुरु ज्ञान का सागर वंदन है मेरे गुरु का, अभिनंदन है गुरु का। गुरु ज्ञान का सागर, वाणी चंदन है गुरु का।। भवसागर पार कराके, गुरु साक्षात् विधाता है। सकल संशय संहारक, गुरु आत्मज्ञान दाता है।। ज्ञान रूपी जगत में, फिरता एकाकी अज्ञानी। प्रज्ञ मिला दुर्गम पंथ, दिया स्वयं बोध निशानी।। मन प्रेम तरंग वास, कामिनी, कलित, कामना। त्याग कर्म रूपी बंधन, धीमान् से हुआ सामना।। ना आता ना जाता कहीं, बैठा था एक अंध कूप। पुष्कर आवरण में तैंरता, गुरु जल धाम के रूप।। मैं जाता गुरु मिलन को, गुरु हो जाता अंतर्ध्यान। तज चाह, लोभ, पाप, तब विद्याधर देगा संज्ञान।। ध्यान में बैठा है महागुरु, सुमिरन करते हुए नाम। निर्गुण रूप है अंतर्यामी, रहे सदा हृदय रूपी धाम।। संसार तप प्रयोगशाला, शोधकर्ता बना है अध्येता। गुरु दे रहा दिशा निर्देश, कर्म फल पाएगा विजेता।। गया गुरु से ज्ञान लेने, शांत हुआ अंतर्मन जिज्ञासा। मृगतृष्णा मन में बसा, मिट गया अज्ञान विपाशा।। गुरुदेव बिना आत्मा अपूर्ण, पार करे कौन पुनर्जन्म? हाथ पकड़कर पंथ दिखाया, ना लूंगा बारंबार जन्म।। कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़, (भारत)।