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महिलाओं के साथ बर्बरता-अत्याचारों का संज्ञान

virendra kumar dewangan 24 Jul 2023 आलेख समाजिक Social 8941 0 Hindi :: हिंदी

महिलाओं के साथ बर्बरता
	मणिपुर में 4 मई को बर्बर भीड़ के द्वारा दो महिलाओं के साथ, जिसमें एक की उम्र 20 और दूसरे की उम्र 40 साल बताई जा रही है, उन्हें नग्न कर सड़कों पर बेरहमी से घुमाते हुए अश्लील हरकतें किया गया। घटना के 70 दिनों के बाद तब यह राष्ट्रीय सुर्खी बना, जब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।

	वायरल हुए वीडियो को देखने के बाद मणिपुर की एन बीरेन सिंह की नकारा सरकार हरकत में आई और 6 मुख्य आरोपियों को गिरफ्त में ली। 

	यही नहीं, एक अन्य गंभीर मामले में पीड़िता की मां ने बताया कि 4 मई को ही बहुसंख्यक समुदाय की भीड़ ने उसकी बेटी और उसकी सहेली से सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर नृशंस हत्या कर दिया। दोनों युवतियां पूर्वी इम्फाल जिले के कोनुंग समांग क्षेत्र में किराए के मकान में रहकर गैराज में काम करती थीं।

मणिपुर में 3 मई को भड़की कुकी व मैती समुदाय के बीच हुई हिंसा के बाद इम्फाल घाटी में करीब 7 हजार एफआइआर दर्ज हो चुकी है, जिसमें 70 हत्याओं का दावा किया जा रहा है और 6 सौ से अधिक लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी है।

गौरतलब है कि मणिपुर हाईकोर्ट की ओर से राज्य के मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए विचार करने के आदेश मात्र से दोनों समुदायों का शांति-सदभाव एकाएक भंग हो गया और वे हिंसक हो उठे।

	चूंकि प्रदेश में एसआई रैंक के पुलिस अफसरों की भारी कमी है, इसीलिए अधिकांश मामले में अभी तक जांच आरंभ नहीं हुई है। जो अधिकारी हैं, वे कानून-व्यवस्था को संभालने में जुटे हुए हैं। इसी के साथ वहां समुदायवाद इस कदर हावी है कि एक समुदाय के अधिकारी को दूसरे समुदाय के क्षेत्र में जांच के लिए नहीं भेजा जाता। इससे उनकी जान पर बन आती है। ऊपर से मणिपुर की राजधानी इम्फाल में एक ही जेल है, इसीलिए आरोपियों को वहां रखने में भारी दिक्कते हो रही हैं।

	गंभीर सवाल यह कि देश के बाकी राज्यों की तरह मणिपुर में भी प्रशासनिक तंत्र है, जिसमें पटवारी से लेकर तहसीलदार व एसडीएम, पंचायतें, नगरीय निकायें, पार्षद, महापौर, पंच, सरपंच, विधायक, सांसद, मंत्री; आखिर वे कर क्या रहे हैं, जो सरकार से मोटा भत्ता, वेतन और अन्य सुविधाएं लेते हैं।

	इसीलिए, शासकीय तंत्र को जवाबदार बनाया जाना चाहिए, जो देख-सुनकर भी आंखें मूंदे हुए हैं और सब चलता है कि धारणाएं पाले हुए हैं। गैरजिम्मेदार शासकीय अमले पर कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे रेयर मामले में केवल निलंबन नहीं, वरन बर्खास्तगी की तलवार चलनी चाहिए।

	गनीमत है कि देश में सुप्रीम कोर्ट है, जो मणिपुर के मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है और सरकार को कार्रवाई करने के लिए बाध्य किया है। वरना सरकारें तो कान में तेल डाले बैठी थीं।

 मणिपुर ही नहीं, खबर है कि बिहार के बेगुसराय के तघड़ा थाना क्षेत्र के एक गांव में   ग्रामीणों ने एक नाबालिग व संगीत टीचर को जहां पीटा, वहीं उनके कपड़े फाड़ डाले। पं. बंगाल के मालदा जिले में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर महिलाओं की भीड़ ने उन्हें पीटा। उन दोनों महिलाओं के खिलाफ बाजार में चोरी का आरोप था। प. बंगाल में सम्पन्न विधानसभा व पंचायत चुनाव के दरमियान महिलाओं के साथ बर्बरता की घटनाएं सामने आ ही चुकी है।

	उधर, राजस्थान सरकार के एक मंत्री ने जब यह कहा कि हम महिलाओं की सुरक्षा में विफल हैं और उनके खिलाफ जैसे अत्याचार हो रहे हैं, उसे देखते हुए हमें मणिपुर के स्थान पर अपने अंदर झांकना चाहिए, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

सवाल यह कि मणिपुर हो या बिहार या राजस्थान या हो प. बंगाल या देश का अन्य कोई राज्य; महिलाओं के प्रति होनेवाले अत्याचारों में कोई कमी नहीं है। सब दूर एक-सी स्थितियां हैं। अंतर सिर्फ यह कि कोई मुद्दा उछल जाता है, तो संवेदनशील बन जाता है, तो कोई दब जाता है या दबा दिया जाता है, तो उसकी सुध लेनेवाला कोई नहीं मिलता। इसीलिए महिलाओं के प्रति होनेवाले हिंसा व हैवानियत को एक ही चश्मे से देखने की जरूरत है, फिर चाहे किसी की भी सरकार हो।

	महिलाओं के साथ बलात्संग, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, अत्याचार, भेदभाव, एसिड अटैक और शोषण तो हर राज्य में आम बात है, लेकिन ऐसे मामलों को राजनीतिक क्षुद्रतावश संकीर्ण मानसिकता से देखना उससे भी बड़ा अपराध है।
 
क्या बाकी राज्यांे की सरकारे ंदावे के साथ कह सकती हैं कि उनका राज्य महिला हिंसा और दुष्कर्म से पूरी तरह से मुक्त है। जबकि प्रत्येक राज्य में महिला आयोग और महिला एवं बाल विकास विभाग है। आखिर वे करते क्या रहते हैं, जो महिलाओं के प्रति होनेवाले अत्याचारों का संज्ञान नहीं ले पाते?
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