Meena ahirwar 31 Jul 2023 कविताएँ बाल-साहित्य कविता 10697 0 Hindi :: हिंदी
सांझ ढले ,तो घर आना तुम, कई उम्मीदों को, फ़िर लाना तुम। छुट रहे ,उन रिस्तो की डोर को, फ़िर मजबूती से, बंध जाना तुम। साँझ ढले तो ,घर आना तुम.. सूर्य डूबे ,चाँद निकले , समये पल में बदले, ये सिख देना तुम। आये कैसी भी ,घड़ी जीवन में, फ़िर एक नई उम्मीद ,लाना तुम। साँझ ढले तो घर आना तुम.. फ़िर अपनी रोशनी से, सबके मन को बेहेलाना तुम। सुबह जैसे ही ढले, फ़िर निकल आना तुम। साँझ ढले तो घर आना तुम.. प्रस्तुत पंति- चाँद को निकलने के लिए बोल रही, और अपनी रोशनी से सभी को एक नई उम्मीद के लिए प्रेरित कर रही है। ताकि वह समये के साथ ख़ुद को भी ढाल ले। मीना अहिरवार, जिला- छतरपुर (म.प्र) ।