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मेरा वज़ूद

राहुल गर्ग 06 Mar 2024 कविताएँ समाजिक मेरा वज़ूद, मेरी कविता. चल रहा हूँ मैं 3375 0 Hindi :: हिंदी

चल तो रहा हूँ, पर रुक नहीं सकता 

अपनी सोयी हुयी किस्मत को, अब जगा नहीं सकता।।

मैंने अपने सपनों को, उसी दरिया में बहा दिया 

जिसके किनारे मैं उनको अब, सजा नहीं सकता।।

मुसाफिर हूँ, इसलिए राहगीरों को धन्यवाद करता हूँ 

उन्हें जिंदगी का हमसफर, अब बना नहीं सकता।। 

गर भूल जाऊँ तुम्हें, तो ख़फ़ा मत होना यारों 

आखिरी साँस तक का वादा, अब निभा नहीं सकता।। 

हँस के उठाता हूँ, जिम्मेदारियाँ जो मुझ पर है 

हर बार रोते हुए दिल को, अब मना नहीं सकता।। 

सर मेरा भी झुक जाता है, धनवान लोगों के आगे

खुद को माया के जाल से, अब छुड़ा नहीं सकता।। 

छोड़ दो तमन्ना, मेरी नादान शख्सियत से मिलने की 

कई मुखौटे है चेहरे पर, अब हटा नहीं सकता।। 

इस शरीर को छोड़ा है, मैने दूसरों के वास्ते 

खुद का समय खुद पर, अब लगा नहीं सकता।। 

भाग्य में जो मिल गया है, सब स्वीकार है मुझे 

ये हाथों की लकीरें है, अब मिटा नहीं सकता।। 

अकेला ही चलना है, बस इतना समझ में आया है 

कंधा देने के लिए कोई होगा, अब बता नहीं सकता।।

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