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बैंकों पर भारी एनपीए

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख दुःखद Banks NPA 88373 0 Hindi :: हिंदी

एक ओर देश पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले से उबर नहीं पाया है, तो दूसरी ओर एस बैंक एनपीए की चपेट में आ गया है। बैंक के एटीएम खाली हो गए। बैंक की शाखाओं में पुलिस तैनात कर दिए गए। एस बैंक का चैक बाउंस होने लगा। जो बैंक दो साल पहले 80 हजार करोड़ रुपए के मार्केट कैपवाला बैंक था, वह केवल 4,131 करोड़ का रह गया। यानी मार्केट कैप करीब 76 हजार करोड़ रुपया घट गया।
इसे देखते हुए आरबीआई ने बैंक से 50 हजार से ज्यादा की निकासी पर रोक लगा दी। गौर करनेवाली बात यह भी कि एस बैंक से तिरुपति बाजाजी ने 1300 करोड़ रुपये निकाल लिए थे, लेकिन भगवान जगन्नाथ के 592 करोड़ रुपया फंस गए हैं।
एस बैंक का 25 हजार करोड़ रुपया कुल एनपीए (नान परफारर्मिंग एसेट्स) है। यानी बैंक का पैसा इन कंपनियों में फंसकर डूबने के कगार पर है।
1.	डीएचएफएल-3,700 करोड़ रुपया
2.	रिलायंस एडीए-3,300 करोड़ रुपया
3.	आईएलएंडएफएस-2,442 करोड़ रुपया
4.	काॅक्स एंड किंग्स-2,127 करोड़ रुपया
5.	कैफे काफी डे-1,500 करोड़ रुपया
6.	जेट एयरवेज-552 करोड़ रुपया
उक्त फंसे हुए कर्ज की वजह से एस बैंक आर्थिक संकट से घिर गया। लेकिन, ऐसा नहीं है कि एनपीए की समस्या केवल एस बैंक तक सीमित है। देश के बड़े-से-बड़े बैंक एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं।
नान परफार्मिंग एसेट्स वह कर्ज है, जिसकी वसूली होने की उम्मीद न के बराबर होती है। राज्यसभा में पेश रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बैंकों का एनपीए बीते पांच साल के दौरान 157 प्रतिशत बढ़ा है। 31 मार्च 2015 को सरकारी बैंकों का कुल एनपीए 2,79,016 करोड़ रुपए था। यह 31 मार्च 2018 तक बढ़कर 8,95,601 करोड़ रुपया हो गया है, जो मार्च 2019 तक 9.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
सबसे ज्यादा एनपीए वाले टाप 5 सरकारी बैंक ये हैंः-
1.	एसबीआई-1,59,661 करोड़ रुपया
2.	पीएनबी-76,809 करोड़ रुपया
3.	बैंक आॅफ बड़ोदा-73,140 करोड़ रुपया
4.	बैंक आॅफ इंडिया-61,730 करोड़ रुपया
5.	यूनियन बैंक-49,924 करोड़ रुपया
रिजर्व बैंक के अनुसार, 31 मार्च 2019 तक सरकारी बैंकों के 6699 एनपीए खाते ऐसे हैं, जिनमें कर्ज की राशि 5 करोड़ रुपए से अधिक है। वहीं प्राइवेट बैंक में एनपीए खातों की संख्या 1859 है। सबसे ज्यादा खाते एस बैंक में ही हैं। इसके अलावा विदेशी बैंकों के भी 220 कर्जदारों को एनपीए की लिस्ट में डाला गया है। वहीं स्माल फाइनेंस बैंकों में 5 करोड़ रुपये से अधिक के एनपीए वाले खाते छह हैं।
एनपीए से नुकसानः एनपीए बढ़ने से सबसे अधिक नुकसान बैंक के ग्राहकों को होता है। बैंकें जो कर्ज बांट चुकी हैं, उनमें से 10 प्रतिशत एनपीए हो चुका रहता है। यह बैंकिंग क्षेत्र के खतरनाक संकेत हैं। इससे खाताधारकों की जेब कटती है। ईमानदार खाताधारकों को कर्ज मिलना मुश्किल हो जाता है। बैंक इसकी पूर्ति ईमानदार खाताधारकों से करता रहता है, जो आनलाइन सर्विस, एटीएम सर्विस और ग्राहकों से जुड़ी अन्य सुविधाओं से वसूलता रहता है।
	बैंके किसी सिफारिश और जुगाड़ से ऐसे व्यक्ति व संस्थान को कर्ज दे देते हैं, जो उसे लौटाता नहीं है। जब बैंक पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, तब नुकसान की भरपाई ग्राहकों पर तरह-तरह के चार्ज से करता है। मिनिमम बैलेंस और क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड पर तरह-तरह का नियम थोप देता है। खाते में जमा रकम पर ब्याज कम कर देता है। एटीएम से पैसे निकालने पर चार्ज बढ़ा देता है। पर ट्रांजेक्शन पर पैसा काटा लेता है।
	एस बैंक को डूबने के कगार पर ले जाने के लिए उसके संस्थापक, पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर व सीईओ राणा कपूर को माना जा रहा है। 2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर एस बैंक को आरंभ किया था। 
लेकिन, 26/11 के मुंबई हमले में अशोक कपूर की मौत हो गई। इससे अशोक कपूर की विधवा पत्नी मधु व राणा के बीच बैंक के मालिकाना हक की लड़ाई शुरू हो गई। मधु अपनी बेटी के लिए बैंक बोर्ड मंे जगह चाहती थी। 
इससे मनमुटाव बढ़ता चला गया और बैंक की जड़ें खोखली होती गईं। राणा कपूर ने लोन देने और उसे वसूल करने की प्रक्रिया अपने हिसाब से तय किया। उन्होंने अपने निजी संबंधों के आधार पर लोगों व संस्थानों को लोन दिया। 
2018 में आरबीआई ने राणा कपूर के ऊपर कर्ज और बैलेंस सीट में गड़बड़ी का आरोप लगाकर चेयरमैन के पद से हटा दिया है। अब घोटाला उजागर होने पर ईडी ने उसके घर पर छापा मारा है और लुकआउट नोटिस जारी किया है।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपके प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

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