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कविता (सत्ता )

Sunil suthar 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक सत्ता, राजनीति कि बीमारी, सरकार कि काली कुर्सी, सत्ता कि लड़ाई, कुर्सी कि लड़ाई, राजनीति एक गंधा रास्ता, 11972 0 Hindi :: हिंदी

सत्ता...      (कविता )

1.कागज छुती न कलम उठाती,है इसे कुर्सी पर बैठे रहने की बिमारी, 
2.हां...है अंधी ,गूंगी, बहरी और लंगङी,है इसे गाङी पर बैठे रहने की बिमारी, 
3.कही शर्ते, कही  गांधी की धार तो कही काम हो जाते चमसो की फटकार से,
4.आज तुम ही बताओ ओ कुर्सी माँ, अब तो है जनता की बारी ।।

5.माला पहनाओ तो मना करती,सिर्फ माइक पर हाथ नचाती ,
6.फाइलो को यह आगे सरकाती,रिश्वत का बोलो तो झट से बुलाती,
7.धमाके सुनना पसंद करती, गांव,गली और शहर की शोर यह सब सुनने को मना करती,
8.सत्ता बेचारी बैसाखी के बल चलती, कभी मारूति की करती सवारी,

9.सत्ता सब को जरूरी, कुछ को शौक तो कुछ की मजबूरी, 
10.सत्ता है सब को प्यारी,कभी वो इसके करीब तो कभी यह करीबी, 
11.सत्ता अकङू है, सत्य भी,सिंहासन पर जमी रहो ,बिन मौत यहा मर कर जाओ,
12.जनता जङ है, निर्जीव भी,खाली पेट और ताली बजाना,आज इसकी मौत बनी गरीबी, 

13.कविता ,भाषण और नारे मे,जनता है मजहब की बलिहारी, 
14.सत्ता तुम दिल्ली की देखो,आंगन,द्वार -दिवारो मे ,देखना एक दिन खाक कर देगी यह मजहब की चिंगारी, 
15.सत्ता आजकल सवारो को खाती,देखो मजहब की गलत सवारी,
16.मेढक का राज दरिये पर,और सुअर जंगल को बाट रहे, 
17.देखो बुद्धि जीवी तुम देखो ,यहां बढ गयी मजहब की लाचारी।।

                                            सुनिलनारायण ✒✒

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